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________________ 114... जैन गृहस्थ के व्रतारोपण सम्बन्धी विधियों का प्रासंगिक क्षेत्र से - मध्यखंड तक, काल से- यावज्जीवन के लिए, भाव से - सन्निपातादि रोगों द्वारा ग्रसित न हो जाऊँ, सम्यक्त्व पालन के परिणाम से पतित न हो जाऊँ, तब तक है। 每 सम्यक्त्वव्रत की प्रतिज्ञा करवाने के अनन्तर गुरू व्रतग्राही के मस्तक पर वासचूर्ण डालें। उसके बाद आसन पर विराजमान होकर पंचपरमेष्ठी आदि सात मुद्राओं से अक्षतों को अभिमंत्रित करें। अक्षतों को अभिमंत्रित करते हुए उस पर 'ॐ ह्रीँ श्री इन अरिहंत बीजपदों को हाथ 每 से लिखें। फिर अभिमन्त्रित वासचूर्ण का जिनबिंब के चरणों में निक्षेप करें। तदनन्तर सम्यक्त्व व्रतधारी सात बार खमासमणसूत्र पूर्वक वंदन करें। • पहले खमासमण द्वारा सम्यक्त्व - सामायिक एवं श्रुत- सामायिक को आरोपित करने का निवेदन करें। • दूसरे खमासमण द्वारा व्रत ग्रहण किया है, उस विषय में कुछ कहने की अनुमति लें। • तीसरे खमासमण द्वारा बोलें- हे भगवन्! आपने मुझमें सम्यक्त्व - सामायिक एवं श्रुत - सामायिक को आरोपित किया है? तब गुरू कहे - हाँ। मैंने तुममें दोनों प्रकार के सामायिक को आरोपित किया है। इसी के साथ खमासमणाणं हत्थेणं सुत्तेणं अत्थेणं तदुभएणं सम्मं धारणीयं चिरं पालणीयं- पूर्वकालीन क्षमाश्रमणों के हाथ से यानी गीतार्थ परम्परा से प्राप्त सूत्र द्वारा, अर्थ द्वारा, सूत्रार्थ द्वारा इस व्रत को सम्यक् प्रकार से धारण करना और इसका चिरकाल तक पालन करना। इस प्रकार मंगल वचन कहें। • चौथे खमासमण द्वारा अन्य साधुओं को व्रत ग्रहण के विषय में कहने की अनुमति लें। • पाँचवें खमासमण द्वारा प्रत्येक बार एक-एक नमस्कारमन्त्र का स्मरण करते हुए समवसरण की तीन प्रदक्षिणा दें। उस प्रदक्षिणा के समय व्रतग्राही के मस्तक पर गुरु वासचूर्ण का एवं संघ(श्रावक-श्राविका ) अक्षत का क्षेपण करें। यहाँ वासचूर्ण प्रदान करते हुए गुरु भगवन्त 'तुम महान् गुणों द्वारा वृद्धि को प्राप्त करो और संसार - सागर से पार उतरो' ऐसा मंगलवचन बोलें। • छठें खमासमण द्वारा कायोत्सर्ग करने की अनुमति लें। सातवें खमासमण द्वारा सत्ताईस श्वासोश्वास-परिमाण एक लोगस्ससूत्र का चिन्तन करें। · وث * फिर शुभलग्न का समय आने पर अथवा व्रतदंडक का उच्चारण करवाते समय शुभलग्न आ गया हो, तो व्रतग्राही गुरू की तीन प्रदक्षिणा दें और गुरू निम्न गाथा को तीन बार बुलवाएं
SR No.006240
Book TitleJain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, C000, & C999
File Size37 MB
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