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सम्यक्त्वव्रतारोपण विधि का मौलिक अध्ययन ... 113
लिए कायोत्सर्ग करवाईए । " तब शिष्य गुरू की अनुमतिपूर्वक सत्ताईस श्वासोश्वास परिमाण लोगस्ससूत्र का चिन्तन करें। उसके बाद पुनः व्रतग्राही एक खमासमणपूर्वक सम्यक्त्व - सामायिक एवं श्रुत - सामायिक ग्रहण करवाने के लिए गुरू से निवेदन करें। तब गुरू नमस्कारमन्त्र के स्मरणपूर्वक निम्न पाठ को तीन बार बुलवाएं। उस समय व्रतग्राही शिष्य अर्द्धावनत - मुद्रा में बद्धांजलि युक्त होकर 'व्रतग्रहणपाठ' को त्रियोगपूर्वक धारण करें। सम्यक्त्वव्रत ग्रहण करने का प्रतिज्ञा पाठ यह है
अहं णं भंते तुम्हाणं समीवे मिच्छत्ताओ पडिक्कमामि सम्मत्तं उवसंपज्जामि । नो मे कप्पइ अज्जप्पभिइ अन्नतित्थिए वा अन्न तित्थिय देवयाणि वा, अन्नतित्थियपरिग्गहियाणि अरहंतचेइयाणि वा, वंदित्तएवा, संलवित्तएवा, तेसिं असणं वा, पाणं वा, खाइमं वा, साइमं वा, दाउं वा, अणुप्पयाडं वा, तेसिं गंधमल्लाइ पेसेवा, नन्नत्य रायाभिओगेणं, गणाभिओगेणं, बलाभिओगेणं, देवयाभिओगेणं, गुरूनिग्गहेणं, वित्तीकंतारेणं, तं च चडव्विहं तं जहा - दव्वओ, खेत्तओ, कालओ, भावओ । तत्थ दव्वओ - दंसणदव्वाइं अहिगिच्च, खित्तओ जाव भरहम्मि मज्झिमखंडे, कालओ जाव जीवाए, भावओ जाव छलेणं न छलिज्जामि, जाव सन्निवाएणं न भुज्जामि, जाव केणइ उम्मायवसेण एसो मे दंसणपालण परिणामो न परिवडइ, ताव मे एसो दंसणाभिग्गहोत्ति ।
भावार्थ- हे भगवन् ! मैं आपके समीप मिथ्यात्व का परित्याग करता हूँ और सम्यक्त्व (सम्यग्दर्शन) को धारण करता हूँ। मैं आज से लेकर अन्यतीर्थिकों, अन्य मत के लोगों, अन्य दर्शनियों एवं अन्य तीर्थिकों द्वारा गृहीत जिनालयों को वन्दन, नमस्कार नहीं करूंगा। उनके साथ बातचीत नहीं करूंगा, उनके साथ आहारादि का आदान-प्रदान नहीं करूंगा, उनका सत्कार-सम्मान नहीं करूंगा। मेरी यह प्रतिज्ञा छः प्रकार के कारणों को छोड़कर है। यदि कभी किसी राजा के आग्रह से, समुदाय के आग्रह से, किसी बलवान् चोर- दुष्ट आदि के आग्रह से और आजीविका - निर्वाह करने का संकट तथा प्राणान्त कष्ट के आ जाने से अन्य तीर्थिक संन्यासी या चैत्यों को नमस्कार आदि करना पड़े, तो छूट है। यह मेरा सम्यक्त्वव्रत (पालन का अभिग्रह) द्रव्य से-अन्य दर्शनी को वन्दन आदि न करने की अपेक्षा से है,