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________________ सम्यक्त्वव्रतारोपण विधि का मौलिक अध्ययन ...111 सम्यक्त्व मेरे द्वारा ग्रहण किया गया है, किन्तु इस पाठ के उच्चारण के साथ सम्यक्त्वव्रतारोपण के लिए अन्य क्रियाएँ, किस प्रकार से की जाती हैं? इसका विस्तृत उल्लेख नवीं-दसवीं शती तक उपलब्ध नहीं होता है। जहाँ तक प्राचीन आचार्यों द्वारा रचित ग्रन्थों का प्रश्न है, वहाँ आचार्य हरिभद्रसूरि के पंचाशक प्रकरण, अष्टक प्रकरण, षोडशक प्रकरण आदि ग्रन्थों में भी इस विधि का सुनिश्चित क्रम प्राप्त नहीं होता है। इसके पश्चात् सम्यक्त्वारोपण विधिक्रम का सुव्यवस्थित स्वरूप दसवीं शती के परवर्ती ग्रन्थों में प्राप्त होता है। इस संस्कार विधि के सम्बन्ध में तिलकाचार्यकृत सामाचारी (वि.सं. 1274), श्रीचन्द्राचार्यकृत सुबोधासामाचारी (वि.सं. 1300), जिनप्रभसूरिरचित विधिमार्गप्रपा (वि.सं. 1363), वर्धमानसूरिकृत आचारदिनकर (वि.सं. 15 वीं शती) आदि विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। इन ग्रन्थों में हमें सम्यक्त्वारोपणविधि का एक सुव्यवस्थित रूप दृष्टिगत होता है। इससे परवर्ती ग्रन्थों में यह विधि आचार दिनकर आदि ग्रन्थों से ही उद्धृत एवं संकलित की गई मालूम होती है। यहाँ यह कहना प्रासंगिक है कि श्रमण भगवान महावीर के निर्वाण से विक्रम की 10 वीं शती तक श्वेताम्बर, दिगम्बर एवं यापनीय-इन तीन परम्पराओं के अतिरिक्त अन्य गच्छों या सम्प्रदायों का विभाजन नहीं हुआ था। इन तीनों परम्पराओं में यद्यपि कुछ गणों, कुलों एवं शाखाओं के उल्लेख हैं, किन्तु उनमें इन धार्मिक विधि-विधानों को लेकर क्या मतमतान्तर थे? इन्हें जानने का कोई साधन उपलब्ध नहीं है। उनके ग्रन्थों में ऐसे उल्लेख प्राय: नहींवत् हैं। इसके अनन्तर विक्रम की दसवीं शताब्दी के पश्चात् सर्वप्रथम श्वेताम्बर मूर्तिपूजक-परम्परा में 'खरतरगच्छ' का उद्भव हुआ। फिर क्रमशः अचलगच्छ, तपागच्छ, पार्श्वचन्द्रगच्छ, विमलगच्छ आदि की उत्पत्ति हुई। इस विषय में कुछ अधिक कहना अनुचित होगा। फिर भी प्रसंगत: इतना कह देना जरूरी है कि वर्तमान में जो परम्पराएँ मुख्य रूप से प्रचलित हैं, उनमें गच्छ-उद्भव की प्राथमिकता को दृष्टि में रखते हुए हम जैन विधि-विधानों । का प्रतिपादन करेंगे।
SR No.006240
Book TitleJain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, C000, & C999
File Size37 MB
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