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________________ सम्यक्त्वव्रतारोपण विधि का मौलिक अध्ययन ...105 त्याग क्र. | आचार्य हरिभद्र आचार्य हेमचन्द्र आचार्य नेमिचन्द्र | पं.आशाधर द्वारा प्रतिपादित द्वारा प्रतिपादित । द्वारा प्रतिपादित | द्वारा प्रतिपादित | निन्दित कार्यों का | | उचित वेशभूषा | माध्यस्थवृत्ति कृतज्ञ धारण करना(10) | अवर्णवाद(द्वेषबुद्धि) | बुद्धि के आठ | दीर्घदृष्टि जितेन्द्रिय का त्याग | गुणों से युक्त होना(33) 15. | सत्पुरूषों की संगति | प्रतिदिन धर्मश्रवण | सत्कथक एवं धर्मश्रवणकर्ता करना करना(30) | सुपक्षयुक्त 16. / माता-पिता की अजीर्ण होने पर दयालु | पूजा करना भोजन का त्याग नम्रता करना | पापभीरू 18. | 17. | अनुद्वेगमय(शांतिमय) समय पर भोजन | विशेषज्ञता | प्रवृत्ति करना (20) | स्वाश्रितों का | धर्म, अर्थ और वृद्धानुगामी | परिपालन काम-पुरूषार्थ का उचित सेवन करना (25) 19. | देव, अतिथि और । | अतिथि-साधु कृतज्ञ | दीनजनों की सेवा | और दीन की करना सेवा करना(19) | प्रकृति के अनुकूल | कदाग्रह का परहितकारी समय पर भोजन | त्याग करना । करना | अयोग्य देश और अयोग्य काल में गमन नहीं करना गुणों का पक्षपाती | साध्य का ज्ञाता | होना (32)
SR No.006240
Book TitleJain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, C000, & C999
File Size37 MB
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