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________________ 104... जैन गृहस्थ के व्रतारोपण सम्बन्धी विधियों का प्रासंगिक .... क्र. | आचार्य हरिभद्र आचार्य हेमचन्द्र आचार्य नेमिचन्द्र | पं.आशाधर | | द्वारा प्रतिपादित द्वारा प्रतिपादित | द्वारा प्रतिपादित | द्वारा प्रतिपादित 3. | प्रत्यक्ष और परोक्ष | | समान कुलशील | सौम्यता सत्यभाषी आपत्तियों से के साथ विवाह सावधान करना (3) | शिष्टजनों पापभीरू होना लोकप्रियता | धर्म, अर्थ और (सज्जनों) के काम का अविरोध | चारित्र की प्रशंसा सेवन करने वाला करना | इन्द्रिय विजेता | प्रसिद्ध देशाचार | अक्रूरता सुयोग्य स्त्रीधारी | (इन्द्रियों के प्रति का पालन | आसक्त न होना) | करना(12) | उपद्रवकारी स्थान । | अवर्णवाद का पापभीरूता उचित | का वर्जन त्याग करना(14) स्थान(महल्ला) 7. | स्वयं के योग्य उचित स्थान पर | अशठता उचित घर | व्यक्तियों का निवास करना (9) आश्रय लेना 8. | श्रेष्ठ पुरूषों को सत्पुरूषों की । सुदक्षता | लज्जाशील | स्वीकार करना, संगति करना (15) | गुणदर्शी होना | 9. | उचित स्थान पर माता-पिता की लज्जाशीलता | उचित आहारसेवी | गृह-निर्माण | सेवा करना(16) 10. | उचित वेशभूषा उपद्रवकारी दयालुता | उचित आचरण अचल स्थान का त्याग करना (6) 11. | उचित व्यय निंदित कार्यो का | गुणानुराग | सत्पुरूषों की त्याग करना(13) संगति करने वाला 12. | प्रसिद्ध देशाचार । उचित व्यय प्रिय सम्भाषण | बुद्धिमान् का पालन करना(11)
SR No.006240
Book TitleJain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, C000, & C999
File Size37 MB
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