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सम्यक्त्वव्रतारोपण विधि का मौलिक अध्ययन ...101 इन पूर्वोक्त गुणों से युक्त गृहस्थ ही धर्म-आराधना करने की योग्यता प्राप्त करता है। ___ आचार्य नेमिचन्द्रकृत प्रवचनसारोद्धार में श्रावक के इक्कीस गुणों का उल्लेख किया गया है। उनके मतानुसार इन इक्कीस गुणों को धारण करने वाला व्यक्ति व्रतों की साधना करने का अधिकारी बनता है। वे गुण ये हैं1. वह धर्म के प्रति श्रद्धावान् हो 2.चतुर हो 3. प्रकृति से सौम्य हो 4. लोकप्रिय हो 5. अक्रूर हो 6. पापभीरू हो 7. सरल-निष्कपट हो 8. निरभिमानी हो 9. लज्जाल हो 10. दयालु हो 11. मध्यस्थ विचारों वाला हो 12. समान दृष्टिवाला हो 13. गुणानुरागी हो 14. सत्कार्य में दक्ष हो 15. सुदीर्घदर्शी हो 16. विशेषज्ञाता हो 17. महापुरूषों का अनुसरण करने वाला हो 18. विनीत हो 19. कृतज्ञ हो 20. परोपकारी हो और 21. मर्यादायुक्त व्यवहार करने वाला हो।102
पं. आशाधर ने सागारधर्मामृत में व्रत-साधना के मार्ग पर आगे बढ़ने वाले श्रावक के लिए निम्न गुणों का निर्देश किया है- 1. न्यायपूर्वक धन का अर्जन करने वाला हो 2. गुणीजनों को माननेवाला हो 3. सत्यभाषी हो 4. धर्म, अर्थ और काम का परस्पर विरोध-रहित सेवन करने वाला हो 5. गणवती पत्नी हो 6. योग्य स्थान(महल्ला) हो 7. योग्य मकान से युक्त हो 8. लज्जाशील हो 9. सात्त्विक आहार करने वाला हो 10. उचित आचरण वाला हो 11. श्रेष्ठ पुरूषों की संगति करता हो 12. बुद्धिमान् हो 13. कृतज्ञ हो 14. जितेन्द्रिय हो 15. धर्मोपदेश श्रवण करने वाला हो 16. दयालु हो 17. पापों से डरने वाला हो-ऐसा व्यक्ति गृहस्थधर्म व्रत का आचरण करें।103
__ आचार्य जिनप्रभसूरि ने उपशम आदि गुणों से युक्त व्यक्ति को सम्यक्त्व आदि व्रत धारण करने का अधिकारी माना है।104
निष्पत्ति- निष्कर्ष यह है कि जैन परम्परा में सम्यक्त्वव्रत ग्रहण करने के पूर्व भी व्यक्ति को कुछ योग्यताएँ अर्जित करना आवश्यक है। पूर्वाचार्यों ने यह निर्देश किया है कि सम्यक्त्व की प्राप्ति उसी के लिए संभव है, जिसने अनन्तानुबन्धी कषायचतुष्क का उपशम या क्षय किया हो। इसी के साथ व्रतसाधना के लिए श्रावक में जो योग्यताएँ होनी चाहिए, उन सद्गुणों में से अधिकांश का सम्बन्ध हमारे सामाजिक जीवन से है। वैयक्तिक जीवन में