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________________ 94... जैन गृहस्थ के व्रतारोपण सम्बन्धी विधियों का प्रासंगिक .... प्रकार नगर में द्वार, मुख में चक्षु और वृक्ष में मूल प्रधान हैं उसी प्रकार ज्ञान, चारित्र, तप और वीर्य-इन चार आराधनाओं में एक सम्यक्त्व ही प्रधान हैं।73 सम्यग्दर्शन के माहात्म्य को बताते हुए आचार्य शुभचन्द्र लिखते हैं- जिस जीव को सम्यग्दर्शन प्राप्त हो चुका है, उस पवित्र आत्मा को मैं मुक्त हुआ ही मानता हूँ, चूंकि मुक्ति का प्रधान अंग(साधन)उसे ही निर्दिष्ट किया गया है।74 __आचार्य गुणभद्र के मतानुसार सम्यक्त्व से रहित दर्शन, ज्ञान, चारित्र और तप पत्थर के भारीपन के समान व्यर्थ हैं, परन्तु सम्यक्त्व सहित होने पर वही मूल्यवान मणि के समान पूजनीय है।75 पं. आशाधरजी यहाँ तक कहते हैं- मिथ्यात्व से ग्रस्त चित्त वाला मनुष्य पशु के समान आचरण करता है जबकि सम्यक्त्व से युक्त चित्त वाला पशु भी मनुष्य के समान आचरण करता है। ___ इस तरह सम्यग्दर्शन ही सबसे उत्तम पुरूषार्थ है, सबसे उत्तम तप है, उत्कृष्ट ज्योति है, इष्ट पदार्थों की सिद्धि है, परम मनोरथ है और अनेक कल्याणों की परम्परा है। संक्षेप में यह समझना चाहिए कि इस संसार में जो शुभ रूप कर्म हैं, शुभ कार्य हैं, शुभ भाव हैं, वे सब सम्यग्दर्शनपूर्वक ही होते हैं और बिना सम्यग्दर्शन के वे सब कार्य या भाव मिथ्या, विपरीत एवं अशुभ होते हैं।77 ___बौद्धदर्शन में भी मिथ्या दृष्टिकोण को संसार का किनारा एवं सम्यक् दृष्टिकोण को निर्वाण का किनारा माना गया है। इस सन्दर्भ में गीता का भी यही पाठ है-'श्रद्धावाल्लभते ज्ञानम्' अर्थात श्रद्धावान् ही ज्ञान को प्राप्त करता है।78 इस प्रसंग में अध्यात्मयोगी आनन्दघन ने चौदहवें तीर्थंकर की स्तुति करते हुए कहा है कि शुद्ध श्रद्धा के बिना समस्त क्रियाएँ राख पर लीपने के समान व्यर्थ हैं।79 _आचार्य शंकर ने सम्यग्दर्शन का महत्त्व प्रतिपादित करते हुए लिखा हैसम्यग्दर्शननिष्ठ पुरूष संसार के बीजरूप अविद्या आदि दोषों का उन्मूलन करता है और निर्वाण-लाभ प्राप्त करता है। निष्कर्ष यह है कि जब तक सम्यग्दर्शन नहीं होता, तब तक राग का उच्छेद नहीं होता और बिना राग उच्छेद के मुक्ति नहीं होती।
SR No.006240
Book TitleJain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, C000, & C999
File Size37 MB
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