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सम्यक्त्वव्रतारोपण विधि का मौलिक अध्ययन ...87 समवायांग, स्थानांग, भगवती आदि सूत्रों में अवश्य है, लेकिन इन पाँच अंगों के युगपत् स्वरूप का अभाव है। यह वर्णन सर्वप्रथम आचार्य हरिभद्रसूरि के श्रावकप्रज्ञप्ति में प्राप्त होता है।55 इसके अनन्तर खरतरगच्छीय जिनेश्वरसूरिप्रणीत ‘पंचलिंगीप्रकरण' में प्राप्त होता है जो सम्यक्त्व के पाँच लिंगों का प्रतिपादन करने वाला एक स्वतन्त्र ग्रन्थ है। इस ग्रन्थ पर आचार्य जिनपतिसूरि द्वारा विरचित संस्कृत बृहत्वृत्ति भी संप्राप्त है। इसके पश्चात् यह चर्चा प्रवचनसारोद्धार एवं इससे परवर्ती कृतियों में उपलब्ध होती है। अर्वाचीन कृतियों में इसे पाँच लिंग न कहकर ‘पाँच लक्षण' के नाम से उल्लिखित किया है और इसे सम्यक्त्व के अन्य भेदों में प्रमुख स्थान दिया गया है।
दिगम्बर-परम्परा में सम्यक्त्व के आठ बाह्यसूचक लिंग माने गए हैं, जो श्वेताम्बर मान्य पाँच लिंग में समाविष्ट हो जाते हैं। उनके नाम ये हैं1. संवेग 2. निर्वेद 3. निंदा 4. गर्हा 5. उपशम 6. भक्ति 7. वात्सल्य 8. अनुकम्पा।
जहाँ तक सम्यक्त्व के पाँच अतिचार एवं छः आगार का सवाल है, वहाँ इसका वर्णन उपासकदशा66 एवं आवश्यकसूत्र57 में है। इसके पश्चात् तत्त्वार्थसूत्र एवं परवर्ती संकलित कृतियों में भी यह वर्णन मिलता है। इसके अतिरिक्त व्यवहार सम्यक्त्व के अन्य भेदों की मौलिक चर्चा एक मात्र प्रवचनसारोद्धार में परिलक्षित होती है। पुनश्च सुगमबोध के लिए सड़सठ गुणों की सारणी द्रष्टव्य हैव्यवहार सम्यक्त्व के 67 गुणों की तालिका 2.
3. श्रद्धा 4 लिंग 3 विनय 10
शुद्धि 3 1. परमार्थ-संस्तव | 1. परमागम- 1. अरिहंत विनय | 1. मन शुद्धि
शुश्रूषा 2. परमार्थ सेवना | 2. धर्मसाधना में | 2. अरिहंत प्ररूपित | 2. वचन शुद्धि
उत्कृष्ट अनुराग | धर्म विनय 3. सम्यक्त्वभ्रष्ट- | 3. गुरू वैयावृत्य | 3. आचार्य विनय | 3. काय शुद्धि परिहार
नियम
1.
4.