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________________ सम्यक्त्वव्रतारोपण विधि का मौलिक अध्ययन ...85 इच्छा न होने पर भी विवशता में जो अयोग्य कार्य करना पड़े तथा उस कार्य के करने पर भी सम्यक्त्वव्रत का भंग न होता हो, वह अभिओग कहलाता है। छ: आगारों को 'अभिओग' भी कहा गया है। ये सम्यक्त्व व्रत की आचरणा में सहयोगी बनते हैं। इनका सामान्य वर्णन इस प्रकार है54___ 1. राजाभिओग- राजा की आज्ञा से जिनमत के विपरीत अन्य तैर्थिक एवं उनके द्वारा माने हुए देवादि को अनिच्छापूर्वक वन्दन-नमस्कार आदि करना राजाभिओग आगार है। 2. गणाभिओग- गण, संघ या समदाय। संघविशेष के आग्रह से अनिच्छापूर्वक अन्य तैर्थिक और उनके द्वारा माने हुए देवादि को वन्दन करना गणाभिओग आगार है। 3. बलाभिओग- कोई बलवान् पुरूष द्वारा विवश किए जाने पर अथवा बलवान् मनुष्य के भय से अनिच्छापूर्वक अन्य तैर्थिक को वन्दनादि करना बलाभिओग आगार है। 4. देवयाभिओग- कोई मिथ्यादृष्टि देव-दानव द्वारा बाधित होने पर या उनके भय से अनिच्छापूर्वक अन्य तैर्थिक एवं उनके द्वारा माने गए देवादि को वन्दन-नमस्कार करना देवयाभिओग आगार है। 5. गुरूनिग्रह- विशेष परिस्थिति में माता-पिता, गुरूजन, आदि उपकारी वर्ग के आग्रह से अनिच्छापूर्वक अन्य लिंगियों एवं अन्य देवीदेवताओं को वन्दन आदि करना गुरूनिग्रह आगार है। 6. वृत्तिकान्तार- वृत्ति का अर्थ आजीविका है और कान्तार का अर्थ जंगल-अटवी है। आजीविका का निर्वाह करने के लिए और कभी जंगल में भटक जाए, तो प्राणरक्षा के निमित्त अनिच्छापूर्वक अन्य तैर्थिक को वन्दनादि करना वृत्तिकान्तार आगार है। ___ छः भावना- विविध विचारों से समकित में दृढ़ होना भावना कहलाती है। वे छः प्रकार की हैं__1. सम्यक्त्व धर्मरूपी वृक्ष का मूल है। 2. सम्यक्त्व धर्मरूपी नगर का द्वार है। 3. सम्यक्त्व धर्मरूपी महल की नींव है। 4. सम्यक्त्व धर्मरूपी जगत् का आधार है।
SR No.006240
Book TitleJain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, C000, & C999
File Size37 MB
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