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________________ 84... जैन गृहस्थ के व्रतारोपण सम्बन्धी विधियों का प्रासंगिक .... गमन करना संवेग है।53 दशवैकालिकनियुक्ति में मोक्ष की अभिलाषा को संवेग कहा है। सम्यक्त्व व्रतधारी को संवेग गुण से युक्त होना चाहिए। 3. निर्वेद- निर्वेद का अर्थ है उदासीनता, वैराग्य, अनासक्ति। सांसारिक प्रवृत्तियों के प्रति उदासीन रहना निर्वेद है। 4. अनुकम्पा- अनु + कम्पा-इन दो शब्दों के संयोग से 'अनुकम्पा' शब्द बना है। इसका अर्थ है अनु-तदनुसार, कम्प-कम्पित होना अर्थात किसी प्राणी के दुःख से पीड़ित होने पर उसी के अनुरूप दु:ख की अनुभूति होना अनुकम्पा है अथवा दुःखी, दरिद्र, मलिन एवं ग्लान को देखकर कम्पित होना, द्रवित होना अनुकम्पा है। ___5. आस्तिक्य- अस्ति-होना, शाश्वत रूप से होना। जो नवतत्त्व आदि पदार्थ शाश्वत रूप से हैं, उनमें विश्वास रखना आस्तिक्य है। 'आस्तिक्य' शब्द के अनेक अर्थ हैं, किन्तु इस अध्याय में निर्दिष्ट अर्थ ही अभिप्रेत है। उक्त पाँचों लक्षण निश्चय सम्यग्दर्शन की क्रियात्मक परिणति है, जो व्यवहार में परिलक्षित होती है। इन पाँच लक्षणों से साधक की बाह्यप्रवृत्ति प्रशस्त होती है। इन्हीं बाह्य लक्षणों को देखकर जीव में सम्यक्त्व की प्राप्ति का अनुमान लगाया जाता है। इन पाँच लिंगों के बिना सम्यक्त्व का अभाव सुनिश्चित समझना चाहिए। छः यतना- सम्यक्त्व की रक्षा के लिए उपयोग रखना, यतना है। 1-2. अन्यदर्शनी-परिव्राजक, बौद्धभिक्षु आदि साधु; मिथ्यात्वीदेवशंकर, बुद्ध आदि के द्वारा मान्य मन्दिर, चैत्य आदि को वन्दन-नमस्कार नहीं करना। 3-4. अन्य धर्मावलम्बियों के साथ बिना बुलाए आलाप-संलाप नहीं करना। 5. अन्य धर्मानुयायियों को भोजन, पात्र आदि नहीं देना। 6. परतीर्थिक देवों की और अन्य द्वारा गृहीत जिन-प्रतिमाओं की पूजा के लिए धूप, पुष्पादि नहीं देना। ऐसा करने से अन्य का मिथ्यात्व दृढ़ होता है। इन छ: यतनाओं का पालन करने से सम्यक्त्व निर्मल बनता है। छः आगार- आगार का अर्थ है व्रत अंगीकार करते समय पहले से रखी गई छूट।
SR No.006240
Book TitleJain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, C000, & C999
File Size37 MB
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