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82... जैन गृहस्थ के व्रतारोपण सम्बन्धी विधियों का प्रासंगिक ....
तीन शुद्धि- अरिहंतदेव, अरिहंत द्वारा प्रतिपादित धर्म और अरिहंतदेव की आज्ञानुसार प्रवृत्ति करने वाले साधु- ये तीनों ही विश्व में सारभूत हैं ऐसा विचार करना सम्यक्त्व शुद्धि है। इस प्रकार का चिन्तन करने से सम्यक्त्व शुद्ध होता है।
पाँच दूषण त्याग- सम्यक्त्वव्रत स्वीकार करने के उपरान्त भी जो तत्त्व यथार्थता को जानने एवं अनुभूत करने में बाधक हैं अथवा जिनके द्वारा सम्यक्त्व गुण मलीन होता है वे दूषण कहलाते हैं, इन्हें सम्यक्त्व व्रत के अतिचार भी कहते हैं। सम्यक्त्व को दूषित करने वाले पाँच अतिचार निम्न हैं
1. शंका- अरिहन्त परमात्मा द्वारा उपदिष्ट सिद्धान्तों के प्रति शंका करना। 2. कांक्षा- मन्त्र-तन्त्र-चमत्कार आदि देखकर स्व-धर्म को छोड़ देना और
पर-धर्म की इच्छा करना आकांक्षा है। 3. विचिकित्सा- धर्मानुष्ठान के फल के प्रति संदेह करना विचिकित्सा है। 4. मिथ्यादृष्टियों की प्रशंसा करना। 5. मिथ्यादृष्टियों के साथ अति परिचय रखना। __ आठ प्रभावक- जो भव्य पुरूष धर्म प्रचार में सहायक होते हैं वे प्रभावक कहलाते हैं। प्रभावक आठ माने गए हैं1. प्रावचनी- बारह अंग आदि अथवा जिस समय जो आगम प्रधान माना
जाए, उसे समझने वाले। 2. धर्मकथी- आक्षेपणी, विक्षेपणी, संवेगजननी, निर्वेदजननी-इन चार
तरह की कथाओं द्वारा श्रोताओं के मन को प्रसन्न करने वाले। 3. वादी- वादी, प्रतिवादी, सभ्य और सभापतिरूप चतुरंग सभा में दूसरे
मत का खण्डन करते हुए अपने पक्ष का समर्थन करने वाले। 4. नैमित्तिक- भूत, भविष्य और वर्तमान काल में होने वाले हानि-लाभ
को जानने वाले। 5. तपस्वी- उग्र तपस्या करने वाले। 6. विद्यावान- विशिष्ट विद्याओं को जानने वाले। 7. सिद्ध- अंजन, पादलेप आदि सिद्धियों वाले। 8. कवि- गद्य-पद्य की रचना करने वाले।