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सम्यक्त्वव्रतारोपण विधि का मौलिक अध्ययन...73
त्रिविध वर्गीकरण
सम्यक्त्व का त्रिविध वर्गीकरण इस प्रकार है- 1. कारक 2. रोचक और 3. दीपक 126
1. कारक सम्यक्त्व - 'कारयतीति कारकम् ' - इस निरूक्ति के आधार पर जिस सम्यग्दर्शन के प्रभाव से जीव स्वयं तो श्रद्धावान् होकर सम्यक्चारित्र का पालन करता ही है, किन्तु अन्य जीवों को भी प्रेरणा देकर सदाचरण में प्रवृत्त करता है, वह कारक सम्यक्त्व है जैसे - साधु ।
2. रोचक सम्यक्त्व - रोचक का अर्थ है - रूचि रखना। जिस सम्यक्त्व के उदय से जीव सिर्फ सत्य पदार्थ के प्रति श्रद्धा ही कर पाता है, किन्तु तदनुकूल आचरण नहीं कर पाता है अथवा जिस सम्यक्त्व के उदय से जीव शुभ को शुभ और अशुभ को अशुभ रूप में जानता है और शुभ प्राप्ति की इच्छा भी करता है लेकिन उसके लिए प्रयास नहीं करता अथवा जिस सम्यक्त्व के होने पर व्यक्ति सदनुष्ठान में केवल रूचि रखता है, क्रिया नहीं करता, वह रोचक सम्यक्त्व है जैसे - सम्राट श्रेणिक आदि ।
3. दीपक सम्यक्त्व - दीपक का शाब्दिक अर्थ है - सम्यक्त्व को दीप्त करना। जिस सम्यक्त्व के कारण जीव स्वयं तो तत्त्वश्रद्धान नहीं रखता है, किन्तु उसके पास तत्त्वज्ञान का बाहुल्य होने से दूसरों को प्रेरित कर सम्यक्त्वी बना देता है, अथवा जिसके द्वारा जीव दूसरों को सन्मार्ग पर लाने का कारण बनता है, लेकिन स्वयं कुमार्ग का ही पथिक बना रहता है, वह दीपक सम्यक्त्व है। यह सम्यक्त्व अभव्य और मिथ्यादृष्टि भव्य को होता है । अभव्य व्यक्ति भी ग्यारह अंग पढ़ सकता है, किन्तु उन पर श्रद्धा नहीं रख पाता।
सम्यक्त्व का त्रिविध वर्गीकरण एक अन्य प्रकार से भी किया गया है, जिसका आधार कर्म- प्रकृतियों का क्षयोपशम है। जैन विचारणा में अनन्तानुबंधी(तीव्रतम) क्रोध, मान, माया, लोभ तथा मिथ्यात्वमोह, सम्यक्त्वमोह और मिश्र मोह - ये सात प्रकृतियाँ सम्यक्त्व ( यथार्थबोध ) की विरोधिनी हैं। इसमें सम्यक्त्व का मोह मात्र सम्यक्त्व की निर्मलता और विशुद्धि में बाधक होता है। नियमतः कर्म प्रकृतियों की तीन स्थितियाँ हैं1. क्षय 2. उपशम और 3. क्षयोपशम । इसी आधार पर सम्यक्त्व का यह वर्गीकरण किया गया है - 1. औपशमिक सम्यक्त्व 2. क्षायिक सम्यक्त्व और