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सम्यक्त्वव्रतारोपण विधि का मौलिक अध्ययन ... 71
सांशयिक मिथ्यात्व है।
5. अनाभोगिक— उपयोग से शून्य होना। एकेन्द्रिय जीवों से लेकर असंज्ञी पंचेन्द्रिय तक जीवों का ज्ञान अनाभोगिक मिथ्यात्व कहलाता है। उक्त पाँच प्रकार के मिथ्यात्व भावों का त्याग करना सम्यक्त्व है। सम्यग्दर्शन प्राप्ति के हेतु
सत्य तत्त्व की प्रतीति होना, सत्य का ज्ञान होना, सत्य अर्थ को स्वीकार करना, सत्य पदार्थ पर वैसी श्रद्धा होना सम्यग्दर्शन है। सम्यग्दर्शन दो कारणों से उत्पन्न होता है - निसर्गज और अधिगमज | 23
1. निसर्गज सम्यक्त्व - जिस प्रकार नदी के प्रवाह में पड़ा हुआ पत्थर बिना प्रयास के स्वाभाविक रूप से गोल हो जाता है, उसी प्रकार बिना किसी आलम्बन के ज्ञानावरणी - दर्शनावरणी कर्म का क्षयोपशम होने पर जो सत्यता का बोध होता है, वह सत्यप-बोध निसर्गज (प्राकृतिक ) सम्यग्दर्शन कहलाता है, यह सम्यक्त्व बिना किसी गुरू के उपदेश या प्रेरणा के होता है।
2. अधिगमज सम्यक्त्व - गुरू आदि के उपदेश, जिनवाणी के श्रवण, स्वाध्याय आदि के निमित्त से जो सत्यबोध होता है, वह अधिगमज सम्यक्त्व कहलाता है।
सम्यग्दर्शन के प्रकार
जैनागमों में सम्यग्दर्शन के स्वरूप का निरूपण दो, तीन, पाँच, दस, आदि अनेक भेद-प्रभेदों के आधार पर किया गया है। वह निम्नानुसार है - द्विविध वर्गीकरण
सम्यक्त्व का द्विविध वर्गीकरण तीन प्रकार से किया गया है 1. द्रव्य और भाव 2. निश्चय और व्यवहार 3. सराग और वीतराग।
द्रव्य सम्यक्त्व और भाव सम्यक्त्व
1. द्रव्य सम्यक्त्व - विशुद्ध रूप में परिणत किए हुए मिथ्यात्व के कर्म परमाणु द्रव्य-सम्यक्त्व है।
2. भाव सम्यक्त्व - विशुद्ध पुद्गलवर्गणा के निमित्त से होने वाली तत्त्व श्रद्धा भाव-सम्यक्त्व है।