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62... जैन गृहस्थ के व्रतारोपण सम्बन्धी विधियों का प्रासंगिक .... 73. दुविहंतिविहेण पढमो, दुविह दुविहेणं बीयओ होइ।
दुविहं एगविहेण, एगविहं चेव तिविहेणं। एगविहं दुविरुण, इक्किक्कविहेण छट्ठओ होइ। उत्तरगुण सत्तमओ, अविरतओ चेव अट्ठमओ।।
आवश्यकनियुक्ति, 1572-73 74. करणतिगेणेक्किक्क, कालतिगे तिधणसंखिय मिसीण। सव्वं ति जओ गहिय, सीयालसयं पुण गिहीणं।।
___विशेषावश्यकभाष्य, 3540 75. विशेषावश्यकभाष्य, 2686-88 76. विधिमार्गप्रपा-सानुवाद, पृ. 8 77. प्रवचनसारोद्धार, गा. 245-246 की टीका 78. वही, गा. 236-241 79. विधिमार्गप्रपा-सानुवाद, पृ. 7-8 80. आचारदिनकर, पृ. 47 81. जैन, बौद्ध और गीता के आचार दर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन, भा.-2,
पृ. 261-262 82. अंगुत्तरनिकाय,-5, उद्धृत-जैन, बौद्ध और गीता के आचारदर्शनों का
तुलनात्मक अध्ययन, पृ.-302 83. दीर्घनिकाय, 3/7/240, उद्धृत- वही, पृ. 302 84. वही, 3/8/244 85. वही, 3/7/199 86. वही, 3/8/245 87. सुत्तनिपात, 3/7/244