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जैन गृहस्थ के प्रकार एवं उसकी धर्माराधना विधि ...59 33. 'अक्षर्मादिव्यः'-ऋग्वेद, 10/34/13 34. 'अट्ठावए न सिक्खेज्जा' -सूत्रकृतांगसूत्र, 9/17 35. विपाकसूत्र, 1/6 36. मनुस्मृति, पं. रामशर्मा आचार्य, 5/55 37. वही, अ.-5 38. योगशास्त्र, 3/16 39. अष्टकप्रकरण, 14,15,16 40. वसुनन्दिश्रावकाचार, गा.-99 41. प्रश्नव्याकरणसूत्र, संपा. मधुकरमुनि, 1/3 42. जैन आचार सिद्धान्त और स्वरूप पृ.-263-92 43. मन्हजिणाणंआण मिच्छ, परिहरह घरह सम्मत्तं। छविह आवस्सयंमि, उज्जुत्तो होइ पइदिवस।।1।।
पव्वेसु पोसहवय दाणं, सीलं तवो अ भावो ।
सज्झाय नमुक्कारो, परोवयारो अ जयणा अ ॥2॥ जिणपूआ जिण थुणणं, गुरूथुअ साहम्मिआण वच्छल्लं। ववहारस्स य सुद्धि, रहजत्ता तित्थजत्ता य ॥3॥
उवसम विवेग संवर, भासासमिइ छ जीव करूणा य।
धम्मिअं जण संसग्गो, करणदमो चरण परिणामो।।4।। संघोवरि बहुमाणो, पुत्थयलिहणं पभावणा तित्थे।
सड्ढाण किच्चमेअ, निच्चं सुगुरूवअसेण।।5।। 44. सूक्तमुक्तावली, गा. 93 45. श्राद्धविधिप्रकरण, प्रथम प्रकाश 46. वही, प्रथम प्रकाश/गा.9 47. वही, द्वितीयप्रकाश/पृ. 107-108 48. वही, चतुर्थप्रकाश/पृ.114 49. वही, षष्ठप्रकाश 50. कल्पसूत्र बालावबोधटीका-पृ.130 51. संघा दिसुकृत्यानि, प्रतिवर्ष विवेकिना। यथाविधि विधेयानि, ह्येकादशभिनानि च।।
उपदेशप्रासादवृत्ति, 3/पृ.-79