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संस्कारों का मूल्य और उनकी अर्थवत्ता...25
समाहारत: संस्कारों के महत्त्व को उद्घाटित करते हुए यही कहा जा सकता है कि संस्कार सम्पन्न करते समय जो भी विधि-विधान या कर्मकाण्ड किए जाते हैं, उनका व्यक्ति के मन पर सूक्ष्म प्रभाव पड़ता है। उसकी मनोभूमि बुराइयों एवं क्षुद्रताओं से ऊपर उठकर अच्छाइयों एवं महानताओं को ग्रहण करने लगती है। साथ ही उस अवसर पर जो शिक्षाएँ दी जाती हैं, वे भी कम महत्त्वपूर्ण नहीं होती। उस समय उत्सव मनाते हुए एवं मनोभूमि को विशेष उल्लसित करके जो शिक्षाएँ दी जाती हैं, वे ठीक समय पर बोए जाने वाले बीज की तरह फलवती होती हैं। इस तरह समय-समय पर किए जाने वाले इन षोडश संस्कारों का विज्ञान सत्परिणामों से परिपूर्ण होता है। संस्कार आरोपण के मार्मिक उद्देश्य ___मानव जीवन को परिष्कृत बनाने वाली विधि विशेष का नाम 'संस्कार' है। जैसे तूलिका (बश) के बार-बार घुमाने से चित्र सर्वांग पूर्ण बन जाता है, उसी भांति विधि पूर्वक संस्कारों के अनुष्ठान द्वारा शम-दम आदि गुणों का विकास होता है। संस्कारों का मूल उद्देश्य तीन रूपों में परिलक्षित होता है- 1. दोषमार्जन 2. अतिशयाधान और 3. हीनांगपूर्ति। खान से निकला हुआ लोहा अत्यन्त मलिन होता है। सर्वप्रथम सफाई द्वारा उसका ‘दोषमार्जन' करते हैं, फिर आग की नियमित आंच (ताप) में तपाकर उससे इस्पात तैयार किया जाता है, जिसे 'अतिशयाधान' कहते हैं। फिर उस इस्पात को प्रयोग में आने लायक जो कमी होती है, उसकी पूर्ति की जाती है। यह क्रिया 'हीनांगपूर्ति' कहलाती है। ठीक इसी प्रकार भारतीय महर्षियों ने जीवन को अपने लक्ष्य (मोक्ष) तक पहँचाने हेतु विविध संस्कारों की शास्त्रीय व्यवस्था दी है।
गर्भाधान, जातकर्म, अन्नप्राशन आदि संस्कारों से दोषमार्जन, उपनयन, ब्रह्मव्रत आदि संस्कारों से अतिशयाधान तथा विवाह, अग्न्याधान आदि संस्कारों से हमारे जीवन की हीनांगपूर्ति होती है। इस प्रकार संस्कारों की अनेक विधियों द्वारा मानव अपने लक्ष्य तक पहुँचने में समर्थ होता है।45
संस्कार आरोपण के कुछ उद्देश्य ये भी मननीय हैं - 1. प्रतिकूल प्रभावों की परिसमाप्ति करना। 2. अभिलषित प्रभावों को आकृष्ट करना। 3. शक्ति, समृद्धि, बुद्धि आदि की प्राप्ति करना।