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xivi... जैन गृहस्थ के सोलह संस्कारों का तुलनात्मक अध्ययन ___ आज के युग में हमारी संस्कृति एवं संस्कार धूमिल होते जा रहे हैं। नैतिकता, प्रामाणिकता, आपसी सौहार्द्र, निश्छल प्रेमभाव, नि:स्वार्थ वृत्ति आदि गुणों का लोप होता जा रहा है। इन सभी का मुख्य कारण उचित रूप से संस्कारों की परिपालना न करना ही है।
आज दाम्पत्य जीवन प्रारम्भ होने से पहले ही तलाक की स्थिति तक पहुँच जाते हैं। बच्चे का जन्म होने के साथ ही अध्ययन आदि हेतु Admission हो जाते हैं इस तरह विकास की इतनी अति हो गई है कि मानव मात्र यंत्रवत बनकर रह गया है। मनुष्य को मानव जीवन की महत्ता समझाने एवं आत्मिक आनंद से पूरित करने हेतु संस्कार एक आवश्यक चरण है। ___ इस कृति के माध्यम से जैन समाज में जैन पद्धति पूर्वक जन्म, विवाह आदि संस्कार करने हेतु शास्त्रोक्त दिशा प्राप्त हो, संस्कारों की मूल्यवत्ता पुनः समाज में अनुप्राणित हो तथा सर्वत्र सत्संस्कारों की सुरभि प्रसरित हो, इन्हीं भावों के साथ षोडश संस्कारों के पुनर्जागरण का एक लघु प्रयास किया है।