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________________ अनुभूति के शब्द जीवन एक छोटा सा शब्द है। इस छोटे से शब्द में सम्पूर्ण जगत समाहित हो जाता है। दुनिया के जितने विषय हैं, जितनी वस्तुएँ हैं सभी का मूल्य शब्द की उपस्थिति में ही है। इन सभी का लाभ एवं आनन्द वही ले सकता है जिसे जीवन जीने की कला का ज्ञान हो, जिन्हें मानव जीवन की दुर्लभता का भान हो और उसके प्रति सम्मान हो। इसी दुर्लभता को ध्यान में रखकर अनेक धर्माचार्यों एवं तत्त्व चिन्तकों ने जीवन जीने हेतु कई नियम-उपनियम बताए हैं। . संस्कार एक प्रचलित शब्द है। सामान्यतया किसी भी वस्तु, पदार्थ या व्यक्ति आदि को विशिष्ट सुंदरता प्रदान करने हेतु जो क्रिया की जाती है उसे संस्कार कहा जाता है। मानव को महामानव बनाने एवं उसे मोक्ष लक्ष्य तक पहुँचाने हेतु शास्त्रों में सोलह संस्कारों का विधान किया गया है। भारतीय सभ्यता में सदाकाल से ही सत्संस्कारों की प्रधानता रही है। इसी कारण ऋषिमुनियों ने जीव के गर्भ में आने से पूर्व ही उसे सुसंस्कारित करने हेतु कई विधान बतलाए हैं। उन्हीं का संयुक्त रूप है षोडश संस्कार। जीव के गर्भ में आने अर्थात संसार में प्रवेश करने से लेकर उसकी मृत्यु (संस्कार छोड़ने की स्थिति) तक के विधानों का उपक्रम इसके अन्तर्गत किया जाता है। यद्यपि वर्तमान में सोलह संस्कारों को वैदिक परम्परा से सम्बन्धित माना जाता है परंतु जैनाचार्यों ने कहीं पर संक्षिप्त रूप में, कहीं पर आंशिक रूप में तो कहीं-कहीं विस्तृत वर्णन भी किया है। आगम ग्रन्थों में किंच संस्कारों का उल्लेख संप्राप्त होता है। वर्तमान में नामकरण, अन्नप्राशन, विवाह, चूड़ाकरण आदि कुछ संस्कारों का ही अस्तित्व देखा जाता है। यदि गहन विचार किया जाए तो इन संस्कारों की वैज्ञानिक, सांस्कृतिक, सामाजिक आदि अनेक दृष्टियों से महत्ता एवं प्रासंगिकता प्रतिभासित होती है। धर्माचार्यों ने इसके द्वारा मात्र आध्यात्मिक विकास को ही लक्षित नहीं किया अपितु शारीरिक स्वस्थता, बौद्धिक प्रौढ़ता, पारिवारिक समरसता आदि को भी प्रमुखता दी।
SR No.006239
Book TitleJain Gruhastha Ke 16 Sanskaro Ka Tulnatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages396
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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