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________________ विवाह संस्कार विधि का त्रैकालिक स्वरूप ... ..287 संस्कार भी कहा जाता है, क्योंकि 'गौ' यह नाम केश (बालों) का भी है और केशों का अन्तभाग श्मश्रुभाग ही कहलाता है। रघुवंश(3 / 33 पद्य की मल्लिनाथ व्याख्या) के अनुसार 'गौ' अर्थात लोम - केश जिसमें काट दिए जाते हैं, वह गोदान संस्कार है। मनु के अनुसार ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य को क्रमशः सोलहवें, बाईसवें और चौबीसवें वर्ष में केशान्तकर्म कराना चाहिए। आजकल इस संस्कार का आयोजन प्रायः नहींवत रह गया है। उपर्युक्त विवरण से यह बात सर्वथा स्पष्ट हो जाती है कि हिन्दू परम्परा में वैवाहिक संस्कार से सम्बन्धित विधि-विधानों की एक लम्बी सूची है। इसका मुख्य कारण यह है कि कालक्रम के प्रभाव से धार्मिक - विचारधाराएँ, सामाजिकप्रथाएँ एवं लौकिक-क्रियाएँ परिवर्तित होती रहती हैं। जैसा कि प्रारम्भ में धर्म शास्त्रों में केवल वैदिक कर्मकाण्ड ही निहित थे, लौकिक-क्रियाओं और प्रथाओं का उनमें कोई स्थान नहीं था, किन्तु आगे चलकर कुछ परिस्थितियों ने लौकिक-विधिविधानों और प्रथाओं को मान्यता देने के लिए बाध्य कर दिया, साथ ही उन पद्धतियों और प्रयोगों का भी इसमें समावेश कर लिया गया, जो प्राचीन धर्म शास्त्रों की अपेक्षा अधिक व्यावहारिक तथा नवीन परम्पराओं को प्रस्तुत करने वाले हैं। दूसरा कारण यह है कि भारत के भिन्न-भिन्न भागों में विभिन्न पद्धतियों एवं प्रयोगों का अनुसरण किया जाता है। परिणामस्वरूप भिन्न-भिन्न प्रदेशों में वैवाहिक क्रियाएँ भी भिन्न-भिन्न हैं, अतः उसके विधि-विधान की संख्या में भी अन्तर है। जैन परम्परा की भाँति हिन्दू परम्परा के सम्बन्ध में भी एक बात अवश्य उल्लेखनीय है कि कन्या के द्वार पर तोरण बांधना, वर द्वारा तोरण का स्पर्श करना, सासुजी द्वारा पौंखण कार्य करना, बहन द्वारा लवण उतारना, वर के पाँव धोना इत्यादि बहु प्रचलित कृत्य-विधियों का वैदिक ग्रन्थों में निर्देश हुआ हो ऐसा पढ़ने में नहीं आया है। विवाह संस्कार सम्बन्धी विधि-विधानों के बहुपक्षीय प्रयोजन विवाह का तात्पर्य है- ऊपर उठाना, योग देना, ग्रहण करना, धारण करना आदि। विवाह कामभोग प्रविष्टि का प्रमाण-पत्र नहीं है, अपितु एक मानवीय व्यवस्था है। मूलतः विवाह मनुष्य के जीवन में सर्वाधिक क्रान्तिकारी घटना है और यह मनुष्य के जीवन में एक पूर्णतः नवीन अध्याय का प्रारम्भ कर दो
SR No.006239
Book TitleJain Gruhastha Ke 16 Sanskaro Ka Tulnatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages396
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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