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________________ 286...जैन गृहस्थ के सोलह संस्कारों का तुलनात्मक अध्ययन चतुर्थीकर्म- विवाह के उपरान्त चौथी रात्रि का कृत्य। सीमान्तपूजन- वधू के नगर में वर एवं उसकी बारात के पहुंचने पर उनका सम्मान करना। आधुनिककाल में यह कृत्य वाग्दान के पूर्व किया जाता है। हर-गौरीपूजा- शिव एवं गौरी की पूजा करना। तैलहरिद्रारोपण- वधू के शरीर पर तेल एवं हल्दी के लेप के उपरान्त बचे हए भाग से वर के शरीर का लेपन करना। आर्द्राक्षतारोपण- वर एवं वधू द्वारा भीगे हुए अक्षतों को परस्पर में एकदूसरे पर छिड़कना। __ मंगलसूत्र बन्धन- वधू के कण्ठ में स्वर्णिम एवं अन्य प्रकार के दाने धागे में पिरोकर बांधना। आधुनिक युग में यह मंगलसूत्र नामक एक आभूषण होता है, जो पति के जीवित रहने तक धारण किया जाता है। उत्तरीयप्रान्त बन्धन- वर एवं वधू के वस्त्र के कोनों में हल्दी एवं पान बांधकर उन दोनों को एक साथ बांधना। एरिणीदान- एक बड़े थाल में जलते हुए दीपक के साथ भाँति-भाँति की भेंट सजाकर कन्या की सास को देना, जिससे वह वधू को स्नेह से रखे। देवकोत्थापन एवं मण्डपोदवासन- आमन्त्रित देवी-देवताओं का विसर्जन करना और विवाह-मण्डप को हटाना।58 वैदिक परम्परा में विवाह को पन्द्रहवाँ संस्कार कहा गया है यहाँ तुलनापरक दृष्टि से ही इस संस्कार की विधि चौदहवें संस्कार के क्रम में कही गई है। मूलत: इस परम्परा में चौदहवाँ संस्कार केशान्त नाम का माना गया है। केशान्त संस्कार- केशान्त का शब्दश: अर्थ है-केश का अन्त कर देना अर्थात केश का मुण्डन करवा देना। .. वैदिक मान्य वेदारम्भ(11वाँ) संस्कार में ब्रह्मचारी बालक गुरुकुल में वेद ग्रन्थों का अध्ययन करता है। उस समय ब्रह्मचारी के लिए ब्रह्मचर्य का पालन करना, केश और श्मश्र(दाढ़ी) रखना, मौंजी-मेखला आदि धारण करना अनिवार्य माना गया है। जब विद्याध्ययन पूर्ण हो जाता है, तब केशान्त संस्कार, गुरु कुल में ही सम्पन्न किया जाता है अर्थात श्मश्रु वपन(दाढ़ी बनाने) की क्रिया सम्पन्न की जाती है अत: यह श्मश्रु-संस्कार भी कहलाता है। इसे गोदान
SR No.006239
Book TitleJain Gruhastha Ke 16 Sanskaro Ka Tulnatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages396
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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