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278...जैन गृहस्थ के सोलह संस्कारों का तुलनात्मक अध्ययन
दूसरे फेरे का मन्त्र- “ॐ अहँ कर्माऽस्ति, मोहनीयमस्ति, दीर्घस्थित्यस्ति निबिडमस्ति, दुश्छेद्यमस्ति, अष्टाविंशति प्रकृत्यस्ति। क्रोधोऽस्ति, मानोऽस्ति, मायाऽस्ति लोभोऽस्ति संज्वलनोऽस्ति, प्रत्याख्यानावरणोऽस्ति, अप्रत्याख्यानावरणोऽस्ति, अनन्तानुबन्ध्यस्ति, चतुश्चतुर्विधोऽस्ति हास्यमस्ति, रतिरस्ति, अरतिरस्ति, भयमस्ति, जुगुप्साऽस्ति, शोकोऽस्ति, पुंवेदोऽस्ति स्त्रीवेदोऽस्ति, नपुंसकवेदोऽस्ति। मिथ्यात्वमस्ति मिश्रमस्ति, सम्यक्त्वमस्ति। सप्ततिकोटाकोटिसागरस्थित्यस्ति अर्ह ाँ"
तीसरे फेरे का मन्त्र - “ॐ अहँ कर्माऽस्ति, वेदनीयमस्ति, सातमस्ति, असातमस्ति। सुवेद्यं, सातम्, दुर्वेद्यमसातम्। सुवर्गणाश्रवणं सातं, दुर्वर्गणाश्रवणंमसातम्। शुभषड्रसास्वादनं सातं, अशुभषड्- रसास्वादनमसातं। शुभगन्धाघ्राणं सातं, अशुभगन्धाघ्राणं सातं, अशुभ- गन्धाघ्राणमसातं। शुभपुद्गलस्पर्श: सातं, अशुभपुद्गल-स्पर्शोऽसात। सर्वं सुखकृत्सातं, सर्वं दुखकृत् असात। अहँ ।”
चौथे फेरे का मन्त्र- “ॐ अर्ह सहजोऽस्ति, स्वभावोऽस्ति, संबन्धोऽस्ति, प्रतिबद्वोऽस्ति। मोहनीयमस्ति, वेदनीयमस्ति, नामाऽस्ति, गोत्रमस्ति, आयुरस्ति। हेतुरस्ति, आश्रवबद्धमस्ति, क्रियाबद्धमस्ति। तदस्ति सांसारिक: संबन्धः। अर्ह ॐाँ"
दायजा (धन) प्रदान विधि- जब वर-कन्या अग्नि की प्रदक्षिणा करें, उस समय कन्या को देने योग्य सभी प्रकार की वस्तुएँ-वस्त्र, आभूषण, पात्र, वाहन, पलंग आदि वेदी (चॅवरी) के स्थान पर लाए जाएं। वर-कन्या चौथी प्रदक्षिणा देकर बैठ जाएं। विशेष इतना है कि चौथी प्रदक्षिणा के बाद वर दाईं ओर एवं कन्या बाईं ओर बैठे।52
• उसके बाद गुरु मन्त्र पूर्वक वास, दूर्वा, चावल और दर्भ का दोनों के मस्तक पर निक्षेप करें। फिर गृहस्थ गुरु के कहने पर कन्या का पिता जल, यव, तिल और दर्भ को वर के हाथ में देकर 'सुदायं ददामि प्रतिगृहाण' मन्त्र को बोलते हुए पूर्वोक्त वस्त्र आदि दहेज के रूप में प्रदान करे।
करमोचन विधि- तदनन्तर गुरु वर कन्या को मातगृह में ले जाएं। फिर कन्या के पिता द्वारा निवेदन किए जाने पर गुरु मन्त्र पूर्वक करमोचन करें। करमोचन का मन्त्र निम्न है