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________________ विवाह संस्कार विधि का त्रैकालिक स्वरूप ... 267 7. राक्षस विवाह - कन्या का बल पूर्वक हरण कर विवाह करना राक्षस विवाह है। इस प्रकार के विवाह में कन्या के पिता या स्वयं कन्या, किसी की भी स्वीकृति नहीं ली जाती है, अपितु बल पूर्वक कन्या का हरण कर, उसे अपने उपभोग के लिए रख लिया जाता है। 8. पिशाच विवाह - निद्रिता, मद्यपान से विह्वला या किसी अन्य प्रकार से उन्मत्ता-प्रमत्ता कुमारी के साथ एकान्त में भोग सम्बन्ध द्वारा किया गया विवाह पैशाच विवाह है। गृह्यसूत्र के अनुसार सुप्त, मत्त या अचेतन कन्या का हरण करना पैशाची विवाह है। यह विवाह का निकृष्टतम प्रकार है। आचारदिनकर के अनुसार प्रशस्त (धर्म्य) विवाहों में प्राजापत्य विवाह को छोड़कर शेष तीन विवाह इस कलियुग में प्रचलित नहीं हैं। चार पाप विवाह अप्रशस्त होने से उनकी वेदोक्त विधि भी नहीं है । इस सम्बन्ध में कहा गया हैगोमेध और नरमेध आदि यज्ञ, ब्रह्म, आर्ष और दैवत- ये तीनों प्रकार के विवाह तथा गोत्रज और गुरु संतति- ये कलियुग में नहीं होती हैं। 33 वर्तमान हिन्दू समाज में ब्राह्म व गान्धर्व-ये दो प्रकार के विवाह प्रचलित हैं। यहाँ ज्ञातव्य है कि चार प्रकार के प्रशस्त विवाह में पिता द्वारा या किसी अन्य अभिभावक द्वारा वर को कन्यादान दिया जाता है। प्रथम प्रकार के विवाह को संभवतः ब्राह्म-विवाह इसलिए कहा जाता है कि यह धर्म सम्मत है अतः पवित्र विवाह है। आर्ष विवाह में वर से एक जोड़ा पशु लिया जाता है अत: यह ब्रह्म से निम्न है। प्राजापत्य विवाह में पत्नी के जीते-जी पति को गृहस्थ रहने, संन्यासी न बनने आदि का वचन देना पड़ता है, इसमें शर्त लगी रहती है। चौथे विवाह का नाम 'दैव' इसलिए है कि यज्ञ में देवों की पूजा होती है । आसुर विवाह में धन का सौदा रहता है। गांधर्व में पिता द्वारा दान की कोई बात ही नहीं रहती, प्रत्युत इसके लिए कन्या पिता को उसके अधिकार से वंचित कर देती है । इसका गान्धर्व नाम इसलिए भी है कि गान्धर्व कामातुर कहे गए हैं। राक्षस एवं पिशाच नाम इसलिए हैं कि ये विवाह निकृष्ट कृत्य रूप एवं राक्षसी - पैशाची के स्वभाव रूप होते हैं इन्हें अपहरण की संज्ञा दे सकते हैं। 34 विवाह के अन्य प्रकार दिगम्बर परम्परामूलक साहित्य में विवाह के निम्नोक्त प्रकार भी बताए गए हैं- 1. प्रशस्त विवाह- इसमें प्राजापत्य एवं दैव- विवाह को माना है
SR No.006239
Book TitleJain Gruhastha Ke 16 Sanskaro Ka Tulnatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages396
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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