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विवाह संस्कार विधि का त्रैकालिक स्वरूप ...253 विवाह संस्कार की आवश्यकता विभिन्न संदर्भो में ____ भारतीय संस्कृति में विवाह एक धार्मिक संस्कार है। यह धर्म धारक, संस्कार शोधक एवं गुणाधायक तत्त्व है। संस्कार के दो अर्थ ये भी हैंमलापकर्षण तथा गुणातिशय का आधान। इस परिभाषा के अनुसार स्त्री-पुरूष के अन्तःकरण की मलिनता या कषाय भावना का निराकरण करके उनमें सतीत्व, संयम, विशुद्ध अनुराग एवं धर्मानुष्ठान आदि गुणों का आधान करना यही विवाह संस्कार का उद्देश्य है। यद्यपि प्रजा उत्पादन विषयक भावना भी इसमें निहित होती है, तथापि वह धर्म के विरूद्ध नहीं होती। भारतीय राजनीति में यह क्रम बताया गया है कि धर्म से अर्थ, अर्थ से काम और काम से सुख का उदय होता है। जो धर्म और अर्थ का त्याग करके केवल काम परायण होता है, वह अपनी ही हानि कर बैठता है, अतएव यह संस्कार धर्म पुष्टि के लक्ष्य से किया जाता है।
यदि इस संस्कार की आवश्यकता के पीछे और भी अन्य कारणों को ढूंढा जाए तो प्रतिफलित होता है कि सामाजिक एवं पारिवारिक-जीवन का समुचित ढंग से निर्वाह करने के लिए यह एक आवश्यक अंग है। इस संस्कार के माध्यम से सहिष्णु एवं कर्मशील समाज की स्थापना होती है। सदाचारी और संयमनिष्ठ समाज का निर्माण होता है, आत्मा की उन्नति होती है, पति-पत्नी में उत्पन्न होने वाला प्रेम पवित्र होता है, संतान धर्मनिष्ठ बनती है। यह इस संस्कार की आवश्यकता का प्रथम कारण कहा जा सकता है। भारतीय परम्परा में प्रत्येक व्यक्ति के लिए चार आश्रमों की व्यवस्था की गई है, उनमें से दूसरा आश्रम गृहस्थाश्रम है। इस आश्रम में प्रवेश करने के लिए विवाह एक अनिवार्य शर्त रूप है, अत: गृहस्थाश्रम का संचालन करने हेतु यह संस्कार किया जाता रहा है। - हिन्दू परम्परा के स्मृति ग्रन्थों में तो पुरूष को अनिवार्य रूप से विवाह करने का निर्देश दिया गया है क्योंकि इसके अभाव में वह अपत्नीक पुरूष अयज्ञीय कहलाता है, जो उसके लिए अत्यन्त निन्दा सूचक शब्द माना जाता रहा है। विवाह के अभाव में उसे धार्मिक क्रियाओं का अधिकारी भी नहीं माना जाता है, अत: इस अधिकार को प्राप्त करने के उद्देश्य से भी यह संस्कार किया जाता है।
इस संस्कार का एक कारण वंश परम्परा को अक्षुण्ण रखना भी समझा जा सकता है, क्योंकि स्वच्छंद यौन सम्बन्धों में वंश या कुल परम्परा को बनाए