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________________ 198...जैन गृहस्थ के सोलह संस्कारों का तुलनात्मक अध्ययन जिनोपवीत धारण के अयोग्य कौन? ___ जैन साहित्य के लोकप्रिय ग्रन्थ आदिपुराण, आचारदिनकर, धर्मसंग्रहश्रावकाचार आदि में वर्णन है कि ब्राह्मण, क्षत्रिय एवं वैश्य-ये तीन वर्ण वाले ही संस्कार करने-करवाने के अधिकारी होते हैं। शूद्र जाति के लिए संस्कार करने का निषेध किया गया है अर्थात् शूद्र जाति में उत्पन्न हुए व्यक्तियों का संस्कार नहीं होता है, अतएव उनके लिए यज्ञोपवीत संस्कार भी नहीं किया जाता है। यहाँ प्रश्न उठ सकता है कि शूद्र को संस्कार के योग्य या मोक्षमार्ग की साधना के योग्य क्यों नहीं माना गया है? इसके कई कारण हैं-शूद्र जात्योत्पन्न व्यक्ति के लिए परम्परा से संस्कार का अभाव होता है। वे मासिकधर्म, सूतक, पातक आदि का पालन नहीं करते हैं। शूद्र की जातियों में प्राय: मद्य, मांस की प्रवृत्ति कुल परम्परा से चलती रहती है। शूद्र की वृत्तियाँ अत्यन्त हिंसाजनक होती हैं। शूद्र में पुनर्विवाह होने से पिंडशुद्धि का अभाव होता है। शूद्र की संतान-प्रतिसंतान में पिंडशुद्धि, रजवीर्यशुद्धि और संस्कार शुद्धि का सर्वथा अभाव होता है। ऐसे अन्य भी कई कारणों को लेकर उसे संस्कार का अधिकारी नहीं माना है। इसे धारण करने का अधिकार स्त्री-जाति को भी नहीं दिया गया है, क्योंकि संस्कारों के अनुपालन में शचिता और पवित्रता का विशेष ध्यान रखना आवश्यक होता है। स्त्री के शरीर का निर्माण इस तरह से हुआ है कि उसे मास में कुछ दिन अपवित्र दशा में रहना पड़ता है। इसी तरह प्रसवकाल में भी वह अपवित्र दशा में रहने हेतु बाध्य होती है। पुरुष के समान स्त्री ब्रह्मचर्य-धर्म का पालन (रजस्वला होने पर) नहीं कर सकती है। इसी प्रकार मन्त्रों के उच्चारण की अशुद्धता भी स्त्री में रहती है। इन सबके बाद भी मनुस्मृति (2/67) में स्त्रियों का विवाह संस्कार ही उनके यज्ञोपवीत संस्कार के समान कहा है। - जिन जातियों में विजातीय विवाह होता है, उन जातियों के लिए भी संस्कार करने का निषेध किया गया है। इससे ध्वनित होता है कि आहारशुद्धि व संस्कारशुद्धि के बल पर ही आचारशुद्धि निर्भर हैं। ____ मूलत: यह चर्चा जैन धर्म के परवर्तीकालीन ग्रन्थों में मिलती है, जिसे किसी न किसी रूप में ब्राह्मण धर्म का प्रभाव माना जा सकता है। प्राचीन जैनागमों में शूद्र को दीक्षा का अधिकारी माना गया है। उत्तराध्ययनसूत्र के
SR No.006239
Book TitleJain Gruhastha Ke 16 Sanskaro Ka Tulnatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages396
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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