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________________ उपनयन संस्कार विधि का आध्यात्मिक स्वरूप... 181 दिगम्बर परम्परा में उपनयन संस्कार का उद्देश्य बालक को द्विजत्व प्राप्त कराना और व्रतों द्वारा सुसंस्कारित कर विद्याध्ययन करवाना है। 17 वैदिक परम्परा में इस संस्कार का मूलोद्देश्य विद्याध्ययन करवाना एवं उसके ब्राह्मण या क्षत्रिय होने की पुष्टि करना है। जैन परम्परा में वर्ण की प्राप्ति कर्मणा है, वही वैदिक परम्परा में उसे जन्मना माना गया है। भारतीय संस्कृति और उपनयन संस्कार की प्राचीनता यदि हम उपनयन संस्कार की प्राचीनता को पुष्ट करना चाहें, तो जहाँ तक जैन आगम ग्रन्थों का प्रश्न है, वहाँ ज्ञाताधर्मकथा, राजप्रश्नीय, औपपातिक, कल्पसूत्र आदि में नामकरण संस्कार पर्यन्त ही उल्लेख मिलते हैं। इसके साथ विद्यारम्भ एवं विवाह के निर्देश भी सामान्य रूप से प्राप्त हो जाते हैं, किन्तु उनमें उपनयन संस्कार का उल्लेख नहीं है। उपनयन संस्कार का एक मात्र उल्लेख प्रश्नव्याकरणसूत्र में उपलब्ध होता है परन्तु वह उल्लेख भी द्वितीय आस्रवद्वार के अन्तर्गत किया गया है तथा इस संस्कार को आरम्भ, समारम्भ व हिंसा आदि का हेतु रूप मिथ्यात्व माना गया है। 18 इससे सूचित होता है कि आगमयुग तक जैन दर्शन में उपनयन क्रिया को संस्कार का स्थान प्राप्त नहीं हुआ था । उपनयन संस्कार का उल्लेख सर्वप्रथम आदिपुराण में प्राप्त होता है और वहाँ उसका प्रवर्त्तक चक्रवर्ती भरत को बताया है। गया है। उपनयन की प्राचीनता के सम्बन्ध में दिगम्बरीय क्षुल्लक ज्ञानसागरजी का मन्तव्य है 19 जिस प्रकार जैन धर्म अनादि है, उसी प्रकार यज्ञोपवीतकर्म भी अनादि है। जैन धर्म की अनादिता महाविदेह क्षेत्र और अनुत्तर देवलोक की अपेक्षा प्रत्यक्षतः सिद्ध कर सकते हैं क्योंकि उन स्थानों पर कभी भी धर्म का अभाव नहीं होता है। दूसरा कारण, वहाँ कालचक्र का परिवर्तन नहीं है अतः सृष्टि प्रलय, पहला- दूसरा आरा इत्यादि बातें भी घटित नहीं होती । वहाँ सदासर्वदा एक जैसा व्यवहार रहता है। वहाँ केवल जैन धर्म ही विद्यमान है, अन्य मत-मतान्तर वाले व्यक्तियों का अभाव रहता है। जैन सिद्धान्त के अनुसार विदेह क्षेत्र में शाश्वती कर्मभूमि है। वहाँ क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र-ये तीन वर्ण रहते हैं तथा आजीविका के लिए उक्त तीनों वर्ण
SR No.006239
Book TitleJain Gruhastha Ke 16 Sanskaro Ka Tulnatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages396
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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