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________________ चूड़ाकरण संस्कार विधि का उपयोगी स्वरूप ...161 होने से जो आघात लगा है, जो शोक और मोह उत्पन्न हुआ है, उसे हटाया जाए। संन्यासी इसलिए सिर मुंडाते हैं कि जीवन क्रम में अब तक चली आ रही दूषित या वैयक्तिक विचारधारा को बदल सकें और विश्व बंधुत्व की भावना को विकसित कर सकें। बंगाल आदि प्रान्तों में विधवाएँ इसी प्रयोजन को लेकर सिर मुंडाती हैं कि वे गृहस्थ जीवन से दूर हटकर अपनी जीवन यात्रा को आत्मकल्याण या विश्वकल्याण हेतु समर्पित कर सकें। सारभूत तथ्य यह है कि जीवन क्रम के प्रचलित ढर्रे को बदलने हेतु मुण्डन एक वैज्ञानिक उपाय है। यह मुण्डन प्रक्रिया मन्त्रोच्चार पूर्वक होती है जिससे भावनात्मक परिवर्तन होता है। इस संस्कार की आवश्यकता के पीछे एक विशिष्ट प्रयोजन यह भी माना जा सकता है कि किसी तत्त्व का वास्तविक स्वरूप निर्धारण करने में बाह्य घटकों की अपेक्षा उसके अन्त:घटक ही अधिक प्रामाणिक होते हैं, परन्तु त्वरित बोध हेतु बाह्य घटकों का आश्रय लेना होता है। जैसे किसी की वेशभूषा या मुखाकृति को देखकर सामान्यतया पता चल जाता है कि वह कौन है? कोई पगड़ी बांधते हैं, तो कोई टोपी लगाते हैं या कोई साफा पहनते हैं, इस तरह हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख की पहचान दूर से ही हो जाती है, मगर भारतीय संस्कृति की पहचान मस्तक की शिखा, धोती या साड़ी, ललाट के तिलक आदि से की जाती है, क्योंकि असल पहचान वही है, जो इच्छित लक्ष्य में लागू हो और अलक्ष्य में उसका अभाव हो अत: चूड़ाकर्म द्वारा भारतीय नागरिक की एक विशिष्ट पहचान मिलती है। चोटी रखने से व्यक्ति के मन में यह विश्वास हो जाता है कि वह हिन्दू है। मुसलमानों में सुन्नत का रिवाज इसलिए है कि वह सदा यह समझता रहे कि वह मुस्लिम धर्म में दीक्षित हुआ है। इस प्रकार शिखा रखने का भी अपने आप में विशिष्ट महत्त्व है। यहाँ यह प्रश्न हो सकता है कि शिखा मस्तक के अमुक भाग पर ही क्यों रखते हैं? वह किसी अन्य भाग पर क्यों नहीं रखी जा सकती है? इसका समाधान यह है कि मस्तिष्क में ज्ञान जागरण का अत्यन्त संवेदनशील स्थल ठीक शिखा के नीचे का भाग ही है इसलिए अमुक भाग ही शिखा के लिए नियुक्त रहता है। मस्तिष्क के इस ऊपरी भाग पर जहाँ बालों का भंवर होता है, वहाँ सम्पूर्ण नाड़ियों एवं संधियों का मेल हआ है। उसे 'अधिपति' नामक मर्मस्थान कहा गया है। इस मर्मस्थान की सुरक्षा के लिए ही उस स्थान पर चोटी रखने का विधान किया गया है।
SR No.006239
Book TitleJain Gruhastha Ke 16 Sanskaro Ka Tulnatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages396
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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