________________
156... जैन गृहस्थ के सोलह संस्कारों का तुलनात्मक अध्ययन
इस प्रकार वैदिक धर्म में कर्णवेध संस्कार से सम्बन्धित दो प्रकार की विधियाँ प्राप्त होती हैं।
कर्णवेध संस्कार विधि का तुलनापरक अध्ययन
जब हम कर्णवेध संस्कार विधि पर तुलनात्मक दृष्टि से विचार करते हैं तो श्वेताम्बर, दिगम्बर एवं वैदिक- इन तीनों परम्पराओं में मान्य इस संस्कार सम्बन्धी अनेक साम्यताएँ एवं विषमताएँ दृष्टिगोचर होती हैं।
•
श्वेताम्बर, दिगम्बर एवं वैदिक इन तीनों परम्पराओं में इस संस्कार के नाम को लेकर पूर्णतः समानता है, केवल क्रम की दृष्टि से भिन्नता है।
• श्वेताम्बर परम्परा में इस संस्कार का स्थान दसवाँ है, दिगम्बर मत में इस संस्कार को पृथक् संस्कार के रूप में मान्यता नहीं मिली है, उसमें बारहवें चौलकर्म - संस्कार के साथ कर्णवेध का अन्तर्भाव कर लिया गया है। वैदिक मत में यह छठवां संस्कार माना गया है।
• दिगम्बर एवं वैदिक परम्परा में इस संस्कार को कौनसे शुभ दिन आदि में करना चाहिए, इसका कोई उल्लेख नहीं मिलता है, लेकिन श्वेताम्बर आम्नाय के आचारदिनकर में प्रस्तुत विषय का सुन्दर विवेचन है ।
में
• तीनों परम्पराओं में यह संस्कार कब किया जाना चाहिए, इस सम्बन्ध कुछ साम्यता है, तो कुछ भिन्नता।
श्वेताम्बर, दिगम्बर एवं वैदिक - तीनों परम्पराओं में तीसरे या पाँचवें वर्ष को इस संस्कार के लिए योग्य माना गया है। श्वेताम्बर में सातवाँ वर्ष और वैदिक परम्परा में सातवाँ, आठवाँ, दसवाँ, बारहवाँ, सोलहवाँ आदि मास भी इस संस्कार के लिए निर्दिष्ट किए गए हैं।
• श्वेताम्बर और वैदिक परम्पराओं में कर्णछेद के अवसर पर कहे जाने वाले मन्त्र का स्पष्टतया निर्देश है, किन्तु मन्त्रोच्चार एवं मन्त्र-प्रयोग की विधि भिन्न-भिन्न हैं।
• श्वेताम्बर परम्परा में कर्णछेद कौन करता है - इसका स्पष्ट उल्लेख नहीं है, किन्तु इतना अवश्य कहा गया है कि यह संस्कार गृहस्थ गुरु सम्पन्न करवाता है। वैदिक मत में कर्णछेद के लिए वैद्य का निर्देश हुआ है, साथ ही स्वर्णकार द्वारा करवाए जाने का भी उल्लेख हुआ है। इस संस्कार की समस्त क्रियाएँ पिता या ब्राह्मण करता है