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________________ 146...जैन गृहस्थ के सोलह संस्कारों का तुलनात्मक अध्ययन परम्परा छठवें महीने से लेकर एक वर्ष तक की अवधि इस संस्कार के लिए सुयोग्य मानती है। __श्वेताम्बर एवं वैदिक दोनों परम्पराओं ने इस संस्कार का काल लिंग के आधार पर भी सुनिश्चित किया है, जबकि दिगम्बर परम्परा में लिंग निर्धारण का कोई उल्लेख नहीं है। इस प्रकार संस्कार काल को लेकर तीनों परम्पराओं में कथंचित् भिन्नता है तो कथंचित् समानता भी। विधि की अपेक्षा- श्वेताम्बर परम्परा में यह विधि विस्तार के साथ चर्चित है वहीं दिगम्बर ग्रन्थों में यह विधि अति संक्षेप में कही गई है तथा वैदिक परम्परा में इस विधि का सामान्य स्वरूप प्राप्त होता है। मन्त्र की अपेक्षा- इस संस्कार विधि के अन्तर्गत तीनों परम्पराओं में किसी न किसी मन्त्र का उल्लेख अवश्य है और उन तीनों में मन्त्र पाठ को लेकर भिन्नताएँ हैं। श्वेताम्बर परम्परा में पाँच प्रकार के मन्त्रों का उल्लेख हुआ है- 1. नैवेद्य चढ़ाने का मन्त्र 2. सूरिमंत्र के अन्तर्गत आया हुआ अमृताश्रव मंत्र 3. कुल देवता मंत्र 4. कुल देवी मंत्र और 5. अन्नप्राशन के समय कहा जाने वाला वेद मंत्र। वह वेद मन्त्र निम्न है23 “ॐ अर्ह भगवान्नर्हन् त्रिलोकनाथ:त्रिलोकपूजितः सुधाधार- धारित शरीरोऽपि कावलिकाहारमाहारितवान् पश्यन्नपि पारणविधा- विक्षुरसपरमान्न भोजनात्परमानन्ददायकं बलं। तद्देहिन्नौ-दारिक शरीर माप्तस्वत्वमप्याहारस्य आहारं तत्ते दीर्घमायुरारोग्यमस्तु अहँ ।” दिगम्बर परम्परा में अन्नप्राशन क्रिया के अवसर पर निम्न मन्त्र बोलने का निर्देश है24 'दिव्यामृतभागी भव, विजयामृतभागीभव, अक्षीणामृतभागी भवा' वैदिक परम्परा में दो प्रकार के लघु मन्त्र देखने में आए हैं- 1. भू:भुव: स्व:25 2. हन्त। 26 उक्त तीनों परम्पराओं में उल्लिखित ये मन्त्र शिशु को अन्न खिलाने के अवसर पर बोले जाते हैं। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि तुलनात्मक दृष्टि से यह संस्कार अत्यन्त महत्त्व का है।
SR No.006239
Book TitleJain Gruhastha Ke 16 Sanskaro Ka Tulnatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages396
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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