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________________ 140... जैन गृहस्थ के सोलह संस्कारों का तुलनात्मक अध्ययन को संग्रहित करे। उसके बाद सभी प्रकार के धान्यों, सब्जियों एवं विकृतियों द्वारा विविध प्रकार के व्यंजन बनाए । • फिर अरिहन्त प्रतिमा का बृहत्स्नात्र की विधि पूर्वक पंचामृत स्नान करवाएं। • फिर निर्मित व्यंजनों को पृथक् पात्र में स्थापित कर मन्त्रोच्चारण पूर्वक जिनप्रतिमा के सम्मुख चढ़ाए। सभी प्रकार के फल भी चढ़ाए। • उसके बाद बालक को अर्हत्स्नात्र का जल पिलाएं। • पुनः वे सब वस्तुएँ, जो प्रतिमा के सम्मुख चढ़ाई थीं, अमृताश्रव मन्त्र से अभिमन्त्रित कर गौतमस्वामी की प्रतिमा के आगे चढ़ाए। फिर उसमें से बची हुई वस्तुओं को कुल देवता के मन्त्र द्वारा कुल देवता एवं देवी मंत्र द्वारा गौत्र देवी की प्रतिमा के आगे रखें। • तदनन्तर कुल देवी के आगे रखे गए नैवेद्य में से शिशु के परिमाण जितना आहार लेकर मंगलगीत गाते हुए उसकी शिशु के मुख में रखे। उस समय गृहस्थ गुरु वेद मन्त्र का तीन बार पाठ करे। • उसके बाद षड्रस युक्त भोजन साधु को बहराए। • मंडलीपट्ट के ऊपर परमान्न (खीर) से भरा हुआ सुवर्णपात्र रखे। • फिर विधिकारक गुरु को द्रोण प्रमाण सभी प्रकार के अन्न का दान करे तथा घी, तेल आदि तुला प्रमाण दे और सभी जाति के 108-108 फल प्रदान करे। साथ ही तांबे की चरू, कांसे का थाल और दो वस्त्र भी देने चाहिए। दिगम्बर– दिगम्बर परम्परा के मतानुसार इस संस्कार में अरिहन्त परमात्मा की पूजा आदि कृत्य करते हैं और बालक को यथायोग्य अन्न खिलाते हैं। आदिपुराण 15 में अन्नप्राशन संस्कार की यही विधि कही गई है। 15 इसके सिवाय यह संस्कार कौन करवाता है ? अन्न आदि की वस्तुएँ किस प्रकार निर्मित करते हैं? शिशु को प्रथम बार कौनसी वस्तु खिलाते हैं? इस सम्बन्ध में कोई विवरण पढ़ने को नहीं मिला है। निषद्या संस्कार - दिगम्बर परम्परा में नौवां निषद्या नाम का संस्कार माना गया है। यह संस्कार शिशु के जन्म के तीन-चार माह पश्चात् किसी शुभ दिन में द्विज द्वारा किया जाता है। इस संस्कार नाम के अनुसार इसमें बालक को उत्तम आसन पर बिठाने की क्रिया की जाती है। इस क्रिया में सिद्ध भगवान् की पूजा करना आदि सम्पूर्ण विधि पूर्ववत ही करनी चाहिए | 16 वैदिक- इस परम्परा में अन्नप्राशन संस्कार की सामान्य एवं प्राचीन विधि इस प्रकार वर्णित है- सर्वप्रथम अन्नप्राशन संस्कार के दिन यज्ञीय-भोजन के पदार्थ
SR No.006239
Book TitleJain Gruhastha Ke 16 Sanskaro Ka Tulnatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages396
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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