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138...जैन गृहस्थ के सोलह संस्कारों का तुलनात्मक अध्ययन अन्नप्राशन संस्कार करने का प्राथमिक अधिकारी
श्वेताम्बर परम्परा में इस संस्कार को जैन ब्राह्मण या क्षुल्लक द्वारा करवाए जाने का निर्देश प्राप्त है। दिगम्बर के अनुसार यह संस्कार कौन करवाता है? इसका स्पष्ट उल्लेख पढ़ने में नहीं आया है तथा वैदिक साहित्य में इस संस्कार से सम्बन्धित विधि-विधानों को पिता और ब्राह्मण-दोनों के द्वारा करवाए जाने का सूचन मिलता है। अन्नप्राशन संस्कार सम्बन्धी शुभमुहूर्त विषयक उल्लेख
श्वेताम्बर परम्परा में यह संस्कार किन नक्षत्रों, तिथियों एवं वारों में किया जाना चाहिए, इसका अत्यन्त स्पष्ट निर्देश है, किन्तु दिगम्बर एवं वैदिक परम्परा में तद्विषयक चर्चा नहींवत प्राप्त होती है। ___आचारदिनकर में इस संस्कार के लिए निम्न दिन शुभ कहे गए हैं- जिस दिन रेवती, श्रवण, हस्त, मृगशिरा, पुनर्वसु, अनुराधा, अश्विनी, चित्रा, रोहिणी, उत्तरात्रय, धनिष्ठा और पुष्य-ये नक्षत्र हों तथा रवि, सोम, बुध, गुरु
और शुक्रवार हों। इसी के साथ शुभ लग्न, शुभ तिथि एवं शुभ योग होने पर शिशु के चंद्रबल को देखकर अन्नप्राशन संस्कार करने का विधान किया है। इसमें यह भी निर्देश है कि जो नक्षत्र आदि इस संस्कार के लिए शुभ हैं, उनमें अच्छे ग्रह विद्यमान होने पर अमावस्या और रिक्ता तिथि को छोड़कर शुभ तिथि में अन्नप्राशन संस्कार करना चाहिए। यदि उस दिन बालक की लग्नकुंडली में अशुभ ग्रह विद्यमान हों तो उसके विपरीत परिणाम क्या हो सकते हैं यह भी निर्दिष्ट किया गया है। इस तरह श्वेताम्बर परम्परा में इस संस्कार के निमित्त शुभदिन आदि का विस्तृत विवेचन उपलब्ध होता है। अन्नप्राशन संस्कार हेतु उपयुक्त काल
श्वेताम्बर परम्परा के मत से यह संस्कार बालक के जन्म से छठवें मास में एवं बालिका के जन्म से पाँचवें मास में किया जाना चाहिए।' दिगम्बर परम्परा में इस संस्कार के लिए बालक-बालिका उनके जन्म से सात, आठ या नौ माह के बाद का समय उत्तम बतलाया गया है। वैदिक परम्परा के अनुसार यह संस्कार कब किया जाना चाहिए, इस सम्बन्ध में विभिन्न मत-मतान्तर देखने को मिलते हैं।