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षष्ठी संस्कार विधि का व्यावहारिक स्वरूप ...109 षष्ठी माता की स्थापना करे। • फिर दधि, चंदन, अक्षत, दूर्वा आदि द्वारा षष्ठी माता की पूजा करे। . उसके बाद आठ माताओं की तरह पुनः षष्ठी माता का पूजन करे। तत्पश्चात नवजात बालक की माता सहित कुल वृद्धाएँ, सधवा स्त्रियाँ आदि गीत गाते हुए एवं वाद्य यन्त्र बजाते हुए षष्ठी रात्रि का जागरण करें।
• दूसरे दिन प्रात:काल में गृहस्थ गुरु प्रत्येक माता का नाम लेकर आठ माताओं एवं षष्ठी माता का विसर्जन करे। . फिर नमस्कार मंत्र से मंत्रित किए हुए जल द्वारा बालक को अभिसिंचित करे तथा वेदमंत्र का उच्चारण करते हुए आशीर्वाद प्रदान करे।
_इस प्रकार यह संस्कार विधि आठ माताओं एवं षष्ठी माता के आह्वान, स्थापन, पूजन एवं विसर्जन पूर्वक सम्पन्न की जाती है। षष्ठी संस्कार विधि का तुलनात्मक विश्लेषण ।
षष्ठी संस्कार कर्म का तुलनात्मक विवेचन जैन ग्रन्थों (श्वेताम्बर ग्रन्थों) के आधार पर ही किया जा सकता है क्योंकि अन्य परम्पराओं में इस नाम का संस्कार ही नहीं है। जैन ग्रन्थों के साथ भी यह समस्या है कि षष्ठी नाम से इस संस्कार का उल्लेख एक मात्र आचारदिनकर नामक ग्रन्थ में ही उपलब्ध होता है, इसके सिवाय प्राचीन या अर्वाचीन किन्हीं भी ग्रन्थों में इस नाम के संस्कार का कोई उल्लेख नहीं है। यद्यपि इतना अवश्य जानने योग्य है कि जैन आगम ग्रन्थों में इस संस्कार का उल्लेख धर्म जागरण या रात्रि जागरण के नाम से प्राप्त होता है और उनमें संस्कार के काल का यत्किंचित् हेर-फेर भी है। ज्ञाताधर्मकथासूत्र में दूसरे दिन रात्रि जागरण करने का निर्देश दिया गया है, जबकि औपपातिक,9 राजप्रश्नीया एवं कल्पसूत्र11 में जन्म से छठवी रात्रि में धर्म जागरण करने का सूचन किया गया है। आचारदिनकर में षष्ठी संस्कार का काल जन्म से छठवां दिन ही बताया गया है।
जब हम वर्धमानसूरिकृत षष्ठीसंस्कारविधि का अवलोकन करते हैं, तो यह पक्ष भी सर्वथा स्पष्ट हो जाता है कि आचार्य वर्धमानसूरि ने इस संस्कार को आगमिक परम्परा एवं कुल परम्परा- दोनों से जोड़े रखा है। आचारदिनकर में रात्रि जागरण करने का जो उल्लेख है, यह आगम-परम्परा का अनुसरण है तथा आठ माताओं सह षष्ठी माता का विधिपूर्वक पूजन आदि करना यह कुल परम्परा का निर्वाहन है। यह संस्कार आगम एवं कुल-दोनों परम्पराओं का