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क्षीराशन(दुग्धपान) संस्कार विधि का क्रियात्मक स्वरूप ...101 अनेहाहारेण तवांङ् वर्द्धतां, बलं वर्द्धतां, तेजो वर्द्धतां, पाटवं वर्द्धतां, सोष्ठवं वर्द्धतां, पूर्णायुर्भव, अहँ ।”
दिगम्बर- दिगम्बर-परम्परा में क्षीराशन संस्कार की पृथक् रूप से कोई विधि नहीं दी गई है। इसमें प्रियोद्भव (जातकर्म)नामक संस्कार विधि के अन्तर्गत ही इसकी चर्चा की गई है। तदनुसार शिशु का पिता मन्त्रोच्चार पूर्वक यह कहता है - 'तू तीर्थंकर की माता के स्तन का पान करने वाला हो।' ऐसा कहते हुए माता के स्तन को अभिमन्त्रित कर, उसे बालक के मुँह में लगा दे। • उसके बाद प्रीति पूर्वक दान करते हुए जन्मकाल की क्रिया को समाप्त करे। दिगम्बर परम्परा में इस संस्कार की इतनी ही विधि दृष्टिगत होती है।
वैदिक- वैदिक-परम्परा में भी क्षीराशन संस्कार विधि की पृथक् रूप से कोई चर्चा नहीं है। जातकर्म संस्कार के अवसर पर इस संस्कार को सम्पन्न करने का वर्णन उपलब्ध होता है। वैदिक परम्परा में जातकर्म संस्कार के दिन प्रमुख रूप से दस प्रकार के कृत्य किए जाते हैं। उनमें एक कृत्य स्तन-प्रतिधान या स्तनप्रदान से सम्बन्धित होता है। यह चर्चा बृहदारण्यकोपनिषदपारस्कर, वाजसनेयीसंहिता, आपस्तब, भारद्वाज आदि ग्रन्थों में स्पष्ट रूप से हुई है तथा इस संस्कार कर्म द्वारा बच्चे को स्तनपान कराने की क्रिया की जाती है। इनमें इतना भेद अवश्य है कि कहीं एक स्तन के लिए और कहीं दोनों स्तनों के लिए मन्त्रोच्चारण का उल्लेख हुआ है। क्षीराशन संस्कार का तुलनात्मक विवेचन ____यदि हम क्षीराशन संस्कार विधि का तुलनात्मक विवेचन करते हैं तो निष्कर्ष के रूप में अग्र लिखित बिन्दु और अधिक स्पष्ट हो जाते हैं। _____ नाम विषयक-क्षीराशन नामक संस्कार की चर्चा केवल श्वेताम्बर परम्परा के आचारदिनकर में ही उपलब्ध होती है, इसके सिवाय दिगम्बर, वैदिक या श्वेताम्बर परम्परा के अन्य किसी भी ग्रन्थ में इसका वर्णन नहीं है। इसका मतलब यह नहीं है कि दिगम्बर एवं वैदिक परम्परा में इस संस्कार को स्वीकार ही नहीं किया गया हो। इन परम्पराओं में यह संस्कार विशिष्ट कृत्य के रूप में किया जाता है तथा जातकर्म संस्कार में इस संस्कार का अन्तर्भाव कर लिया गया है।
अधिकारी विषयक- श्वेताम्बर परम्परा में इस संस्कार को जैन ब्राह्मण या क्षुल्लक द्वारा कराए जाने का निर्देश दिया गया है, जबकि दिगम्बर एवं