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100...जैन गृहस्थ के सोलह संस्कारों का तुलनात्मक अध्ययन
क्षीराशन संस्कार सम्बन्धी शुभ मुहर्त विचार
यह संस्कार किस शुभ दिन में किया जाना चाहिए-इस सम्बन्धी कोई विवेचन किसी भी परम्परा में उपलब्ध नहीं होता है, केवल समयावधि का उल्लेख पढ़ने को मिलता है। क्षीराशन संस्कार हेतु उपयुक्त काल ___श्वेताम्बर परम्परा में इस संस्कार को जन्म के तीसरे दिन अर्थात चन्द्रसूर्य-दर्शन के दिन करने का निर्देश किया गया है। दिगम्बर परम्परा में यह संस्कार प्रियोद्भव(जातकर्म) नामक संस्कार के साथ जन्म के प्रथम दिन ही किया जाता है तथा वैदिक-परम्परा में इस संस्कार को जातकर्म संस्कार के साथ जन्म के प्रथम दिन ही सम्पन्न करने का उल्लेख है। क्षीराशन संस्कार में प्रयुक्त सामग्री
इस संस्कार में प्रयुक्त होने वाली सामग्री का निर्देश श्वेताम्बर, दिगम्बर एवं वैदिक तीनों परम्पराओं में नहीं है। दिगम्बर एवं वैदिक परम्परा में तो इस नाम का अलग से कोई संस्कार ही नहीं है, अत: उनमें इस सामग्री का पाया जाना असंभव ही है, परन्तु आचारदिनकर में भी तत्सम्बन्धी सामग्री का उल्लेख नहीं हुआ है। हम इस संस्कार विधि का सम्यक् परिचय ज्ञात कर आवश्यक सामग्री का सूचन कर सकते हैं। वह इस प्रकार है - 1. एक बड़ा पात्र 2. विविध तीर्थों के जल। ये दो सामग्रियाँ ही इस संस्कार हेतु अपेक्षित होती हैं। क्षीराशन संस्कार की शास्त्रोक्त विधि
श्वेताम्बर- श्वेताम्बर परम्परा में क्षीराशन संस्कार की विधि इस प्रकार निर्दिष्ट है- . सर्वप्रथम पूर्वोक्त गुण सम्पन्न गृहस्थ गुरु अमृत मंत्र द्वारा तीर्थोदक को एक सौ आठ बार अभिमंत्रित करे। • फिर उस अभिमंत्रित जल द्वारा बालक को और माता के दोनों स्तनों को अभिसिंचित करे। उसके बाद माता की गोद में स्थित शिशु की नासिका को माता के स्तन से लगाए। फिर स्तन का पान करते हुए बालक को विधिकारक गुरु मंत्रोच्चार पूर्वक तीन बार आशीर्वाद दें। आशीर्वाद मन्त्र निम्न है - ___ “अहँ जीवोऽसि, आत्मासि, पुरूषोऽसि, शब्दज्ञोऽसि, रूपज्ञोऽसि, रसज्ञोऽसि, गन्धज्ञोऽसि, स्पर्शज्ञोऽसि, सदाहारोऽसि, कृताहारोऽसि, अभ्यस्ताहारोऽसि, कावलिकाहारोऽसि, लोभाहारोऽसि औदारिक शरीरोऽसि,