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________________ अध्याय -6 क्षीराशन(दुग्धपान) संस्कार विधि का क्रियात्मक स्वरूप भारतीय संस्कृति उच्च आदर्शों की संस्कृति रही है। इसमें प्रत्येक मानव को सुसंस्कृत बनाने के लिए कई प्रकार के नियम-उपनियम, विधि-विधान प्रचलित हैं। यह सर्वविदित है कि बाल्यकाल या शैशवकाल में दिए गए संस्कार बालक को सम्पूर्ण जीवन की यात्रा में प्रभावित करते हैं। बाल्यकाल कच्ची मिट्टी की भाँति होता है। जिस प्रकार मिट्टी को मनचाहे आकार में परिवर्तित किया जा सकता है, उसी प्रकार बच्चे के भावी जीवन के निर्माण का आधार भी बाल्यकाल ही होता है। हमारे ऋषि-महर्षियों की सूझबूझ कितनी गहरी होगी? उनका चिन्तन कितना व्यापक होगा? उनकी भावनाएँ कितनी परोपकारयुक्त होंगी? कि उन्होंने शिशु द्वारा माता के स्तनपान किए जाने की प्रक्रिया को भी संस्कार की श्रृंखला में रखा। इस संस्कार का रहस्य गूढार्थ को लिये हुए हैं। श्वेताम्बर परम्परा में इस संस्कार का अपना विशिष्ट स्थान है। इस नाम का संस्कार श्वेताम्बर परम्परा में ही उपलब्ध होता है दिगम्बर एवं वैदिक परम्परा में इस नाम का कोई संस्कार नहीं है। यदि हम क्षीराशन संस्कार की तुलना दिगम्बर और वैदिक परम्परा से करना चाहें तो दिगम्बर में मान्य छठवां प्रियोद्भव संस्कार और वैदिक धर्म में मान्य चौथे जातकर्म संस्कार को क्षीराशन संस्कार के समानार्थक रखा जा सकता है, क्योंकि दिगम्बर परम्परा में प्रियोद्भव संस्कार के समय और वैदिक परम्परा में जातकर्म संस्कार के समय माता के स्तनपान की क्रिया भी कर दी जाती है। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि यह संस्कार तीनों परम्पराओं में किसी न किसी रूप में अवश्य स्वीकार किया गया है।
SR No.006239
Book TitleJain Gruhastha Ke 16 Sanskaro Ka Tulnatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages396
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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