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________________ अध्याय - 2 गर्भाधान संस्कार विधि का मौलिक स्वरूप भारतीय परम्परा में संस्कारों की विशिष्ट महत्ता रही है। इसमें भी गर्भाधान संस्कार को महत्त्वपूर्ण स्थान दिया गया है क्योंकि यह अन्य संस्कारों की नींव के रूप में कार्य करता है। गर्भाधान संस्कार का तात्पर्य गर्भ स्थापना करने सम्बन्धी विधि-विधानों से है। सोलह संस्कारों में प्रथम संस्कार गर्भाधान का माना गया है। इस संस्कार से वीर्य सम्बन्धी तथा गर्भ सम्बन्धी दोषों का मार्जन और क्षेत्र का संस्कार होता है। विधि पूर्वक यह संस्कार करने से अच्छी और सुयोग्य संतान उत्पन्न होती है। मूलत: गर्भाधान के समय स्त्री-पुरुष जिस भाव से भावित होते हैं, उसका प्रभाव उनके रज-वीर्य पर भी पड़ता है। उस रज-वीर्य से उत्पन्न संतान में भी वैसे ही भाव प्रकट होते हैं अत: गर्भाधान शुभ मुहूर्त में किया जाता है। इस विधान से कामुकता का दमन और शुभ भावापन्न मन का सम्पादन होता है, इसलिए यह संस्कार गर्भावास आदि की मलिनता के निवृत्यार्थ एवं उसके शोधनार्थ गर्भिणी का किया जाता है।' गर्भाधान संस्कार का शाब्दिक अर्थ ___ गर्भ + आधान इन दो पदों के मेल से गर्भाधान शब्द का निर्माण हुआ है। गर्भ को स्थापित करना गर्भाधान कहलाता है। श्वेताम्बर परम्परा के अनुसार इसका मूलार्थ गर्भ स्थापना करना नहीं है, अपितु स्थापित गर्भ का संरक्षण और उसे सुसंस्कारित करना है। दिगम्बर परम्परा एवं वैदिक परम्परा में इसका शाब्दिक अर्थ-गर्भ का स्थापन करना ऐसा किया है। एक दृष्टि से गर्भाधान संस्कार को निष्पन्न करने का अर्थ यह है कि दम्पत्ति अपनी प्रजनन प्रवृत्ति से समाज को सूचित करते हैं, क्योंकि प्रजनन-क्रिया वैयक्तिक मनोरंजन नहीं, वरन सामाजिक उत्तरदायित्व है, इसलिए समाज के बुद्धिमान लोगों को निमन्त्रित कर उनकी सहमति लेना आवश्यक है। यदि वे
SR No.006239
Book TitleJain Gruhastha Ke 16 Sanskaro Ka Tulnatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages396
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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