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________________ शोध प्रबन्ध सार ...45 लाभ अर्जित करते हुए संयमी जीवन का किंच आस्वाद ले पाएं यही भावना है। जैन क्रिया-अनुष्ठानों में उपधान एक महत्त्वपूर्ण क्रिया है। यह सम्यक तप आराधना के साथ विशिष्ट क्रियाओं का अलौकिक उपक्रम है। उपधान को साधु जीवन का ट्रेलर कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। देशविरति से सर्वविरति मार्ग पर अग्रसर होने के लिए यह प्रेरणा सूत्र है। इसी कारण छठे अध्याय में उपधान तप वहन विधि का सर्वांगीण अध्ययन प्रस्तुत किया है। __इस अध्याय के अन्तर्गत उपधान शब्द का शास्त्रीय स्वरूप विभिन्न ग्रन्थों के माध्यम से प्रस्तुत किया गया है। इसी क्रम में विविध दृष्टियों से उपधान तप की मौलिकता, आवश्यकता एवं माहात्म्य भी बताने का प्रयास किया है। तदनन्तर उपधान के प्रकार एवं विविध ध्यान- साधनाओं से उसकी तुलना की गई है। उपधान तप एक महत्त्वपूर्ण आत्म विशोधि की क्रिया है अत: इसके शुद्धाचरण हेतु उपधानवाहियों के लिए हर दृष्टि से आवश्यक निर्देश आदि दिए गए हैं। उपधान तप की सूक्ष्मातिसूक्ष्म बातों एवं उसके रहस्यात्मक भेदों को प्रस्तुत करने का भी हार्दिक प्रयत्न इस अध्याय में किया गया है। आद्योपरान्त उपधान तप में अनेक प्रकार के परिवर्तन हए हैं अत: भिन्नभिन्न काल में उपधान का क्या स्वरूप रहा एवं वर्तमान प्रचलित विधियों का वर्णन करते हुए इसे सर्वग्राही बनाने का ध्यान रखा गया है। मालारोपण, उपधान की एक महत्त्वपूर्ण क्रिया है। इसकी विविध पक्षीय जानकारी भी पाठक वर्ग के समक्ष इस अध्याय के माध्यम से प्रस्तुत की गई है। इस अध्याय का मुख्य ध्येय उपधान तप के माहात्म्य एवं श्रावक जीवन में उसकी आवश्यकता को धोतित करना तथा इस आराधना द्वारा श्रमण जीवन का अभ्यास करना है। __इस खण्ड के अन्तिम सातवें अध्याय में संयमी जीवन में आने वाली कठिनाईयों से मन विचलित न हो तद्हेतु ग्यारह प्रतिमाओं को धारण करने की विधि का वर्णन किया है। इस अध्याय में उपासक प्रतिमाराधना का शास्त्रीय विश्लेषण किया गया है। श्वेताम्बर मन्तव्य अनुसार इन प्रतिमाओं का रूप विच्छिन्न हो चुका है वहीं दिगम्बर परम्परा में इन्हें आज भी विद्यमान मानकर इनकी साधना की जाती है। चर्चित अध्याय में उपासक प्रतिमा का अर्थ विश्लेषण करते हुए उसके
SR No.006238
Book TitleJain Vidhi Vidhano Ka Tulnatmak evam Samikshatmak Adhyayan Shodh Prabandh Ssar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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