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________________ 44...शोध प्रबन्ध सार से देशविरति श्रावक की ओर अग्रसर हो पाएं यही इस अध्याय लेखन का लक्ष्य है। समभाव साधना जैन धर्म की प्रत्येक क्रिया का सार है। सामायिक समत्व प्राप्ति का अनुपम एवं अनुभूत मार्ग है। षडावश्यक में प्रथम स्थान सामायिक का है तथा साध एवं श्रावक दोनों ही वर्गों के लिए इसका पालन आवश्यक है। सामायिक की इसी मौलिकता को जन साधारण में प्रसरित करने के लिए चौथे अध्याय में सामायिक व्रतारोपण विधि का प्रयोगात्मक अनुसंधान कर उसके परिणामों को प्रस्तुत किया है। __सामायिक जैन श्रावक की मुख्य साधना है। इस विषयक कई प्रश्न चित्त में अनेकों बार उपस्थित होते हैं। उन्हीं शंकाओं का समाधान करने हेतु इस अध्याय में सामायिक का आगमोक्त स्वरूप एवं तत्सम्बन्धी विविध पहलुओं के रहस्यों को उजागर किया है। तदनु सामायिक साधना को उत्कृष्ट एवं शुद्ध बनाने के लिए विभिन्न दृष्टियों से सामायिक साधना के लाभ, उसके उपकरणों का प्रयोजन, आवश्यक योग्यताओं आदि की चर्चा की है। अध्याय के अंतिम चरण में विविध परम्पराओं में प्रचलित सामायिक विधि को सोद्देश्य प्रस्तुत किया गया है। इस अध्याय के अनशीलन से साधक वर्ग आत्म धर्म में लीन हो सकें एवं देशविरति से सर्वविरति की ओर बढ़ सकें यही अभिधेय है। धर्म के मुख्य दो अंग है- श्रुत और चारित्र। सम्यग्दर्शन एवं सम्यग्ज्ञान श्रुतधर्म रूप है तथा श्रमण और श्रावक के मूल एवं उत्तर गुण चारित्रधर्म रूप है। इन द्विविध धर्मों के संपोषण हेतु पर्व तिथि में पौषध व्रत ग्रहण करने का वर्णन जैन आचार ग्रन्थों में है। इसके द्वारा चारित्र धर्म का पालन होता है। __पाँचवें अध्याय में इसी तथ्य की पुष्टि हेतु पौषध व्रत विधि का प्रासंगिक अध्ययन किया गया है। इस अध्याय में पौषध के तात्त्विक अर्थ को समझाते हुए उसके विभिन्न प्रकार एवं विकल्पों को बताया है। पौषध व्रत की सूक्ष्मता को दर्शाने हेतु तत्सम्बन्धी कर्त्तव्य, सुपरिणाम एवं तद्योग्य आवश्यक तथ्यों का मनन भी किया है। पौषध व्रत की आराधना कब, क्यों और किस विधि पूर्वक करनी चाहिए इसका भी सुविस्तृत वर्णन किया गया है। निष्कर्षत: इस- अध्याय के माध्यम से साधक भौतिक एवं आध्यात्मिक
SR No.006238
Book TitleJain Vidhi Vidhano Ka Tulnatmak evam Samikshatmak Adhyayan Shodh Prabandh Ssar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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