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178...शोध प्रबन्ध सार
इस शोध कार्य का मुख्य लक्ष्य जैन दर्शन की विविधता एवं व्यापकता को दिग्दर्शित करते हुए उसकी जन उपयोगिता एवं वैश्विक आवश्यकता को प्रस्तुत करना है। जैन वाङ्मय के इस अनुशीलन के द्वारा ज्ञान पिपासु एवं शोधार्थी वर्ग को एक नवीन दिशा प्राप्त हो पाएं तथा जन-जन के अन्तरहृदय में विधि-विधानों के प्रति सम्मान एवं सुरुचि उत्पन्न हो पाएं। इसी के साथ
जैन संस्कृति जन संस्कृति बने
आर्य प्रजा विश्व का आदर्श बने प्राचीन वाङ्मय वर्तमान जीवन शैली का आधार बने
विधि-विधान समाज निर्माण का स्तम्भ बने इसी मनोभिलाषा के साथ अन्त में कहना चाहूँगी कि
जिन विषयों पर जितनी सामग्री उपलब्ध हो पाई है उसे यथासंभव पाठक वर्ग की रूचि एवं आवश्यकता अनुसार प्रामाणिक रूप से प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। तदुपरान्त भी उसमें जिनमत के विपरीत कोई प्ररूपणा कर दी हो अथवा कहीं पर आगमोक्त वाक्यों का अभिप्राय सम्यक रूप से न समझा हो तो उसके लिए अन्त:करण पूर्वक मिच्छामि दुक्कडम्।