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________________ शोध प्रबन्ध सार ...177 स्वस्थ व्यक्ति, समाज एवं राष्ट्र के निर्माण हेतु भी प्रेरणा देता है। सात खण्डों में संयोजित यह भाग सात्त्विक एवं सकारात्मक जीवन हेतु प्रेरित करते हुए जीवन के सर्वतोमुखी विकास में सहयोगी बने यही शुभेच्छा है। संक्षेप में कहें तो चार भागों में गुम्फित जैन विधि-विधानों की यह तुलनात्मक समीक्षा तो विधि-विधानों के महासागर से निकला हुआ मात्र एक बिन्दु है। समय की मर्यादा, विषयों की बहुलता एवं मार्गदर्शन की अल्पता के कारण अभी भी कई रहस्यात्मक पक्ष अनछुए हैं। कई ऐसी विधियाँ भी है जैसे तीर्थयात्रा विधि, तिथि विधि, संलेखना विधि, ध्यान विधि आदि जिन पर मौलिक कार्य हो सकता है परन्तु अभी इनकी चर्चा इसमें नहीं की है। जैन विधि-विधान एक बृहत् विषय है। आगम युग से अब तक इस पर हजारों रचनाएँ हैं उन्हें किसी एक व्यक्ति द्वारा या किसी एक शोध में समाहित करना असंभव है। यद्यपि 21 खण्डों में गुम्फित इस बृहद शोध कार्य के माध्यम से अधिकांश जैन विधि-विधानों का त्रिकाल प्रासंगिक स्वरूप प्रस्तुत करने का प्रयत्न किया है। जैनाचार्यों ने क्रिया-विधानों का निर्देशन अनेक पहलुओं को ध्यान में रखकर किया है। इसमें कालानुसार परिवर्तन एवं परिवर्धन भी होता रहा। कुछ परिवर्तन किसी परिस्थिति या काल विशेष के लिए किए गए थे जो बाद में रूढ़ परम्परा बनकर रह गए। यदि आधुनिक जीवनशैली की अपेक्षा से विचार करें तो आज बहुतायत 'वर्ग इन विधानों से ही अपरिचित हैं अत: उनमें अन्तरगर्भित हेतु एवं उद्देश्यों के विषय में जानकारी का पूर्ण अभाव ही है। इस कारण तद्विषयक रुचि का निर्माण होना प्रायः असंभव है। वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए इस विषयक जागृति लाना एवं युवावर्ग का इस तरफ ध्यान आकर्षित करना आवश्यक है। इन शोध खण्डों के माध्यम से जिनधर्म में प्रचलित मुख्य विधि-विधानों के प्रारंभिक रूप से लेकर अब तक के स्वरूप का क्रमिक अध्ययन विविध परिप्रेक्ष्यों में किया गया है। यह वर्णन निवृत्तिमूलक जैन संस्कृति के स्वरूप को स्पष्ट करते हुए उसे प्राणवंत बनाए रखने में सहायक बनेगा। साथ ही आज क्षणैः क्षणैः विलुप्तता की ओर अग्रसर हो रही आर्य संस्कृति के पुन: जीवनीकरण एवं सिंचन के लिए प्रेरणाभूत बनेगा।
SR No.006238
Book TitleJain Vidhi Vidhano Ka Tulnatmak evam Samikshatmak Adhyayan Shodh Prabandh Ssar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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