SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 222
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 168... शोध प्रबन्ध सार इस अध्याय में वर्णित जानकारी के माध्यम से आम जन समुदाय धार्मिक साधनाओं का मूल्य विविध परिप्रेक्ष्य में जान पाएगा। यह खण्ड भारतीय सभ्यता की सशक्त आधारभूत हिन्दू परम्परा की मौलिकता, साधना की सर्वांगीणता, जन कल्याण के प्रति कटिबद्धता आदि को पुष्ट करती है। भौतिक साधनों की ओर आकृष्ट हो रहे वर्तमान समाज को पुनः धर्म मार्ग की ओर प्रेरित करने में यह कृति चुम्बक का कार्य करेगी। खण्ड-19 बौद्ध परम्परा में प्रचलित मुद्राओं का रहस्यात्मक परिशीलन मुद्रा योग पर चल रही इस शोध श्रृंखला के अन्तर्गत चौथे भाग के पाँचवें उपखण्ड के रूप में बौद्ध परम्पराओं में प्रचलित मुद्राओं का रहस्यात्मक परिशीलन किया गया है। इस विश्व में प्रचलित धर्म परम्पराओं में बौद्ध धर्म का अपना गरिमापूर्ण स्थान है। आज एक विशाल जन समुदाय इस धर्म परम्परा का अनुयायी है। भारत में यद्यपि श्रमण संस्कृति में बौद्ध एवं जैन धर्म दोनों का उद्भव हुआ । सैद्धान्तिक दृष्टि से जैन सिद्धान्तों का जहाँ विश्व भर में प्रचार हुआ वहीं बौद्ध परम्परा के अनुयायी एवं इस परम्परा का वर्चस्व अन्य देशों में भी बहुतायत में हुआ। दोनों ही परम्परा की मूल शिक्षाएँ अध्यात्म की ओर अग्रसर करती है। बौद्ध परम्परा का मूल मंत्र है- 'बुद्धं शरणं गच्छामि, धम्मं शरणं गच्छामि, संघं शरणं गच्छामि।' भगवान बुद्ध, उनके द्वारा प्रस्थापित धर्म एवं बौद्ध धर्म संघ ही प्रमुख शरणभूत है। इनकी शरण में जाने मात्र से जीवन का कल्याण हो सकता है। बौद्ध धर्म के संस्थापक भगवान बुद्ध, भगवान महावीर के समकालीन थे। दोनों परम्पराओं की मूल विचारणा में अधिकांश साम्यता देखी जाती है। भगवान बुद्ध का जीवन चित्रण जातक कथाओं के आधार पर किया जाता है। उनकी शिक्षाएँ अधिकांश मौखिक रूप में ही प्राप्त होती है। इनके सिद्धान्तों की प्ररूपणा मुख्य रूप से संसार, पुनर्जन्म और कर्म पर आधारित थी । चार आर्यसत्य, आष्टांगिक मार्ग,
SR No.006238
Book TitleJain Vidhi Vidhano Ka Tulnatmak evam Samikshatmak Adhyayan Shodh Prabandh Ssar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy