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________________ शोध प्रबन्ध सार ...167 यह वर्णन साधकों को साधना में और अधिक एकाग्र एवं समर्पित बनाते हुए युवा पीढ़ी के जुड़ाव में सहयोगी बनेगा यह अपेक्षा करते हैं। पूजा-उपासना भारतीय संस्कृति की मूल पहचान है। आज भी संध्या के समय गंगा तट पर शंख एवं घंटों का नाद सुनाई देता है। मन्दिरों में आरती के स्वर गुंजित होते हैं एवं पंडितों के मुख पर मंत्र रटन सुनाई देने लगता है। इन सब में एक प्रमुख क्रिया है मुद्रा प्रयोग। खण्ड-18 के पाँचवें अध्याय में पूजोपासना आदि में प्रचलित मुद्राओं की प्रयोग विधि बताई गई है। इस अध्याय में षडंगन्यास, जीवन्यास, करन्यास, मातृकान्यास पूजोपचार, ध्यान आदि सम्बन्धी मुद्राओं का सुविस्तृत विवेचन किया गया है। ____यह उल्लेख योग साधकों के लिए महत्त्वपूर्ण सिद्ध हो सकता है। इस अध्याय में वर्णित मुद्रा विधियाँ तत्सम्बन्धी परिणाम एवं मुद्रा चित्र इस साधना को और भी अधिक सरल बनाते हैं। षष्ठम अध्याय में उन मुद्राओं को रेखांकित किया है जो बौद्ध एवं हिन्दू परम्पराओं में समान रूप से प्रचलित एवं आचरित है। हिन्दू एवं बौद्ध परम्परा में अनेक साम्यताएँ देखी जाती है। यद्यपि दोनों संस्कृतियाँ अलग-अलग है परंतु दोनों में परस्परिक संबंध पूर्व काल से रहा है। इसी साम्यता को षष्टम अध्याय में पुष्ट किया गया है। इस अध्याय में उल्लेखित मुद्राएँ धर्म साधना में तो सहयोगी बनती ही है। साथ ही अनेक मानसिक एवं शारीरिक उपलब्धियाँ भी करवाती है। ____ यह अध्याय हिन्दू परम्परा की ही नहीं बौद्ध परम्परा के साधकों को भी आकर्षित करेगा एवं उनके आचरण हेतु प्रेरित करेगा। इस खण्ड का अन्तिम अध्याय उपसंहार रूप में वर्णित है। मुद्रा साधना का मुख्य उत्स यद्यपि आध्यात्मिक उत्कर्ष की प्राप्ति है परंतु खेती करते हुए धान्य के साथ घास-फूस तो स्वयमेव ही प्राप्त हो जाते हैं। उसी तरह मुद्रा साधना के द्वारा आत्मिक शुद्ध स्वरूप की प्राप्ति के साथ-साथ शारीरिक स्वस्थता, मानसिक एकाग्रता, बौद्धिक उच्चता आदि स्वतः ही प्राप्त हो जाती हैं। ___ इस तरह सप्तम अध्याय में मुद्रा साधना के आध्यात्मिक एवं भौतिक सुपरिणाम रूप होने वाले रोग-निवारण की सूची प्रस्तुत की गई है।
SR No.006238
Book TitleJain Vidhi Vidhano Ka Tulnatmak evam Samikshatmak Adhyayan Shodh Prabandh Ssar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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