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________________ शोध प्रबन्ध सार ...161 पाँचवें अध्याय में भारतीय परम्परा में प्रचलित मुद्राओं की विधि एवं उद्देश्य का वर्णन किया गया है। किसी भी कार्य की शुरूआत करने के बाद कालान्तर में उसका स्वरूप विस्तार को प्राप्त करता ही है। इसका एक कारण है कि केवली पुरुषों के अतिरिक्त किसी का भी ज्ञान परिपूर्ण नहीं होता। जो पूर्ण न हो उसमें परिवर्तन एवं परिवर्धन होता ही है। भारतीय परम्परा में भरत नाट्य शास्त्र से प्रारंभ हुई नाट्य कला के साथ कालान्तर में अनेक नाम जुड़े। क्षणै:-क्षणैः अनेक नई मुद्राओं का समावेश इसमें हुआ। उन्हीं मुद्राओं का उल्लेख इस अध्याय में किया गया है। ___ इस अध्याय में 96 सामान्य मुद्राएँ, 12 सम्बन्ध सूचक मुद्राएँ एवं 9 अवतार सम्बन्धी मुद्राओं का विस्तृत उल्लेख किया है। साथ ही उनकी साधना से प्राप्त सुपरिणामों का भी वर्णन किया है। भारतीय शिल्पकला एवं मूर्तिकला के वैशिष्ट्य की ख्याति सम्पूर्ण विश्व में है। भारतीय मंदिर कलाकारी के बेजोड़ नमूने रहे हैं। मुद्राओं की प्राचीनता को सिद्ध करने हेतु इनका विशिष्ट योगदान भारतीय साहित्य परम्परा में रहा है। प्राय: शिल्प शास्त्र से जुड़ी हर प्रतिमा में कोई न कोई मुद्रा प्राप्त हो ही जाती है। T.A. Gopinath Rao ने Elements of Hindu Iconography में इसका विशद सप्रमाण उल्लेख भी किया है। षष्ठम अध्याय में शिल्पकला एवं मूर्तिकला में प्राप्त मुद्राओं का उल्लेख किया है। यह वर्णन हमें अपने आस-पास के वातावरण में मुद्रा विज्ञान की पहचान करवाएगा एवं हमारी दृष्टि को इस विषय में सक्रिय करेगा। अंतिम सप्तम अध्याय में उपसंहार के रूप में नृत्यकला से सम्बन्धी मुद्राओं द्वारा भौतिक एवं आध्यात्मिक चिकित्सा कैसे की जा सकती है? इसका वर्णन किया है। विभिन्न शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक समस्याओं में कौन सी मुद्रा की साधना लाभप्रद हो सकती है। इसका वर्णन चिकित्सकों द्वारा प्रयोग करके उनके द्वारा प्राप्त परिणामों के आधार पर किया गया है। इस अध्याय का लक्ष्य आज की आधुनिक पीढ़ी को हमारी प्राच्य सभ्यता एवं संस्कृति की ओर आकर्षित करना है। आज किसी भी क्रिया, वस्तु या व्यक्ति को तभी जीवन में अपनाया जाता है जब उससे कोई प्रत्यक्ष एवं त्वरित लाभ
SR No.006238
Book TitleJain Vidhi Vidhano Ka Tulnatmak evam Samikshatmak Adhyayan Shodh Prabandh Ssar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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