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शोध प्रबन्ध सार ... 151
चिकित्सा में विभिन्न प्रकार के नगीने अंगूठी के माध्यम से हाथ की अंगुलियों में ही पहने जाते हैं जिनकी तरंगों के प्रभाव से शरीर को स्वस्थ रखा जा सकता है।
एक्यूप्रेशर चिकित्सा के अनुसार हथेली में सारे शरीर के संवदेन बिन्दु होते हैं। सुजोक बेओल मेरेडियन के सिद्धान्तानुसार अंगुलियों से ही शरीर के विभिन्न अंगों में प्राण ऊर्जा के प्रवाह को नियन्त्रित और संतुलित किया जा सकता है। हस्त रेखा विशेषज्ञ हथेली देखकर व्यक्ति के वर्तमान, भूत और भविष्य की महत्त्वपूर्ण घटनाओं को बतला सकते हैं। कहने का आशय यही है कि हाथ, हथेली और अंगुलियों का मनुष्य की जीवन शैली से सीधा सम्बन्ध होता है। ये मुद्राएँ शरीरस्थ चेतना के शक्ति केन्द्रों में रिमोट कन्ट्रोल के समान कार्य करती हैं फलतः स्वास्थ्य रक्षा और रोग निवारण होता है।
मुद्राएँ किसी एक धर्म सम्प्रदाय अथवा आर्य संस्कृति से ही सम्बन्धित नहीं है। ईसाई धर्म में भी हस्त मुद्राएँ देवता और संतों के अभिप्राय एवं भाव अभिव्यक्ति की माध्यम रही हैं। ईसा मसीह की प्रतिमाओं में ऊपर किए गए दाएँ हाथ की मध्यमा एवं तर्जनी ऊर्ध्व की ओर, अनामिका एवं कनिष्ठका हथेली में मुड़ी हुई तथा अंगूठा उन दोनों को आवेष्टित करते हुए जो मुद्रा दर्शायी जाती है वह कृपा, क्षमा एवं देवी आशीष की सूचक है। इसी प्रकार मरियम की मूर्ति में जो मुद्रा दिखाई देती है वह मातृत्व एवं ममत्व भाव की सूचक है। यह भगवान की इच्छाओं के स्वीकार की भी द्योतक है।
हिन्दु और बौद्ध धर्म में प्रयुक्त कई मुद्राएँ विशिष्ट देवी-देवताओं आदि की सूचक है। मुख्यतया तांत्रिक मुद्राएँ विशेष प्रसंगों में पादरी और लामाओं द्वारा धारण की जाती है। इस प्रकार मुद्रा विज्ञान समस्त धर्म परम्पराओं में आचरित एवं सम्मत है।
मुद्रा योग से सम्बन्धित यह शोध कार्य सात खण्डों में किया गया है। उन खण्डों के नाम इस प्रकार हैं
खण्ड - 15 : मुद्रा योग एक अनुसंधान मौलिक संदर्भों में। खण्ड-16 : नाट्य मुद्राओं का मनोवैज्ञानिक अनुशीलन । खण्ड-17 : जैन मुद्रा योग की वैज्ञानिक एवं आधुनिक समीक्षा । खण्ड - 18 : हिन्दू मुद्राओं की उपयोगिता चिकित्सा एवं साधना के
संदर्भ में।