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150...शोध प्रबन्ध सार
आश्चर्यजनक और रहस्यपूर्ण महायन्त्र है। मुद्रा साधना इस मशीन को नियंत्रित करने वाले स्विच के समान है। इसके द्वारा मनुष्य की प्रत्येक प्रकृति को नियंत्रित किया जा सकता है। मुद्रा विज्ञान की एक और विशेषता है कि इसके लिए किसी भी प्रकार के पूर्व प्रबन्ध की आवश्यकता नहीं होती। स्वेच्छा से किसी भी स्थिति में किसी भी समय इसका प्रयोग किया जा सकता है।
मुद्रा विज्ञान के निम्न तथ्य भी ज्ञातव्य हैं
• मुद्रा के द्वारा मानव देह में तीव्रता से प्रत्यावर्तन, विघटन एवं परिवर्तन हो सकता है।
• कुछ मुद्राएँ तत्परता से तो कुछ अभ्यास करने पर लाभ दिखाती है। मुद्राओं का निरन्तर अभ्यास स्थायी लाभ प्रदान कर सकता है।
• मुद्राएँ मानव की सूक्ष्म आंतरिक शक्तियों को जगाने का अभूतपूर्व सामर्थ्य रखती है। इसके द्वारा सुप्त ज्ञान ग्रन्थियों एवं सुप्त स्नायु गुच्छों (Glands) को जागृत किया जा सकता है।
• धर्म और विज्ञान के संयुक्त आचरण से मानव का सर्वतोमुखी विकास हो सकता है।
• लौकिक एवं लोकोत्तर सिद्धियों को प्राप्त करने में मुद्रा योग मुख्य सोपान है।
• मुद्राएँ शरीर की नियन्त्रक होती हैं अत: विभिन्न तत्त्व एवं अवयव योग साधना द्वारा नियन्त्रित रहते हैं।
• चक्र आदि के जागरण में भी मुद्रा योग का अभिन्न स्थान है। इस प्रकार मुद्रा योग एक समग्र साधना है।
यहाँ एक महत्त्वपूर्ण प्रश्न यह उठता है कि अधिकांश मुद्राएँ हाथों से ही क्यों की जाती है? यदि गहराई से अवलोकन किया जाए तो परिज्ञात होता है कि शरीर के सक्रिय अंगों में हाथ प्रमुख है। हथेली में एक विशेष प्रकार की प्राण ऊर्जा अथवा शक्ति का प्रवाह निरन्तर होता रहता है। इसी कारण शरीर के किसी भी भाग में दुःख, दर्द, पीड़ा होने पर सहज की हाथ वहाँ चला जाता है। अंगुलियों में अपेक्षाकृत संवेदनशीलता अधिक होती है इसी कारण अंगुलियों से ही नाड़ी को देखा जाता है। जिससे मस्तिष्क में नब्ज की कार्यविधि का संदेश शीघ्र पहुँच जाता है। रेकी चिकित्सा में हथेली का ही उपयोग होता है। रत्न