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________________ 118...शोध प्रबन्ध सार क्रमिकता का रहस्य, विविध संदर्भो में उसकी मौलिकता आदि अनेक आवश्यक पहलुओं पर चर्चा की गई है। प्रतिक्रमण एक सूत्रबद्ध क्रिया है। विविध सूत्रों के माध्यम से पंचाचार का पालन किया जाता है। ये सूत्र ही प्रतिक्रमण की आराधना एवं सफलता में हेतुभूत बनते हैं अत: इनके विषय में जानकारी होना अत्यावश्यक है। इसी तथ्य को ध्यान में रखकर तृतीय अध्याय में प्रतिक्रमण सूत्रों के प्रयोग का निर्देशन दिया गया है। इस अध्याय में प्रतिक्रमण सूत्रों के शास्त्रीय नाम बताते हुए उन्हें कब, किस मुद्रा में और क्यों बोलना चाहिए यह बताया गया है। दैवसिक आदि प्रतिक्रमण में छः आवश्यक का समावेश कैसे? प्रतिक्रमण में पंचाचार का पालन कैसे? प्रतिक्रमण में छ: आवश्यक कहाँ से कहाँ तक? सूत्रों का संक्षिप्त अर्थ एवं उनकी प्राचीनता आदि पर प्रकाश डाला गया है। चतुर्थ अध्याय प्रतिक्रमण आराधकों के लिए मूल्यवान है। इसमें समस्त परम्पराओं में प्रचलित विधियों का मौलिक स्वरूप दर्शाया गया है। जिससे आराधक अपनी सामाचारी के प्रति भ्रमित न हो। इसमें वर्तमान प्रचलित प्रतिक्रमण विधियों की पूर्ववर्ती ग्रन्थों से तुलना भी की है, जिससे प्रतिक्रमण का ऐतिहासिक स्वरूप भी स्पष्ट हो जाता है। जैन विधि-विधानों में प्रतिक्रमण को सर्वाधिक महत्त्व प्राप्त है। महत्त्वपूर्ण क्रिया की आराधना यदि उतनी ही जागृति एवं आंतरिक जुड़ाव पूर्वक हो तो वह विशिष्ट फलदायी होती है। इस शोध कृति के पंचम अध्याय में प्रतिक्रमण की प्रत्येक विधि के हेतु बताए गए हैं तथा आधुनिक सन्दर्भो में उभरती तत्सम्बन्धी जिज्ञासाओं का सटीक समाधान किया है। इस अध्याय के माध्यम से हर क्रिया के रहस्य एवं उसकी वैज्ञानिक क्रमिकता को भलीभाँति समझा जा सकता है। षष्ठम अध्याय प्रतिक्रमण शुद्धि पर अवलम्बित है। प्रतिक्रमण क्रिया निर्दोष रीति पूर्वक कैसे की जा सकती है? इस सम्बन्ध में कई नियमोपनियम हैं। हम व्यवहार जगत में हर क्रिया के लिए जितने सचेत एवं क्रियाशील रहते हैं आध्यात्मिक क्षेत्र में हम उतना ही प्रमाद करते हैं। कई लोगों के लिए यह क्रियाएँ मात्र एक परम्परा रूप है जिसका निर्वाह वे मात्र करने के लिए करते हैं।
SR No.006238
Book TitleJain Vidhi Vidhano Ka Tulnatmak evam Samikshatmak Adhyayan Shodh Prabandh Ssar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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