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________________ 48...शोध प्रबन्ध सार अत्यावश्यक है अत: द्वितीय खण्ड में मुनि जीवन के आचार पक्ष की चर्चा की गई है। आहार मानव की प्राथमिक आवश्यकता है। मुनि जीवन ग्रहण करने के बाद भी अस्खलित संयम साधना के लिए आहार की जरूरत रहती है। परंतु मुनि जीवन की साधना हेतु कैसा आहार कब ग्राह्य है? मुनि आहार की गवेषणा किस प्रकार करें? आज की परिस्थितियों में वह अपनी आहार संहिता का सुचारू रूप से किस प्रकार निर्वहन करें? आदि अनेक विचारणीय तथ्य हैं। दूसरी बात आचार में दृढ़ रहने के लिए आहार परमावश्यक है। आचार पक्ष का ज्ञाता ही आहार सम्बन्धी नियमों में जागृत रह सकता है अत: तृतीय क्रम पर आहार सम्बन्धी नियमों का निरूपण किया है। चौथे क्रम पर मुनि जीवन के पदारोहण सम्बन्धी व्यवस्था की चर्चा की गई है, क्योंकि मुनि मंडल के कुशल सम्पादन के लिए वरिष्ठ संचालकों का होना आवश्यक है। मुनि जीवन की मर्यादाओं को जानने के बाद भी शिष्यों को सुप्रवृत्त रखने एवं मुनि जीवन के विभिन्न पथों पर सम्यक मार्गदर्शन हेतु अनुभवी एवं कुशल नियंताओं की आवश्यकता रहती है। पदारोहण के माध्यम से उन्हें नियुक्त कर देने पर समस्त मुनि मंडल को एक आलम्बन प्राप्त हो जाता है। . अंतिम क्रम में मुनि जीवन के परम आवश्यक पक्ष स्वाध्याय को उजागर करने का प्रयास किया है। आगमशास्त्र स्वाध्याय एवं सम्यक चिंतन के मूल आधार हैं। इन आगमों का अध्ययन किस रीति से करना चाहिए इसका निरूपण पाँचवें क्रम पर खण्ड-8 में योगोद्वहन के माध्यम से किया है। इन पाँच खण्डों में संयोजित यह भाग श्रमणाचार को शिखर तक पहुँचाते हुए मुनियों को उसके निरतिचार पालन हेतु प्रेरित करेगा तथा श्रावक वर्ग को उचित रूप में सहयोगी बनने की प्रेरणा देगा।
SR No.006238
Book TitleJain Vidhi Vidhano Ka Tulnatmak evam Samikshatmak Adhyayan Shodh Prabandh Ssar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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