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________________ शोध प्रबन्ध सार ...47 भाग-2 श्रमण जीवन को सदा सम्मान एवं आदर्श की भावना से देखा जाता है। परन्तु वर्तमान में धर्म विमुख होता युवावर्ग उनके जीवन की सूक्ष्मताओं से ही अनभिज्ञ है। इस कारण वे उनका न समुचित आदर कर सकते हैं और न ही उनके जीवन यापन में सम्यक रूप से सहयोगी बन सकते हैं। इन सब तथ्यों को ध्यान में रखकर श्रमण जीवन के विविध घटकों को इस भाग में उजागर किया जाएगा। यह भाग पाँच खण्डों में निम्न प्रकार से विभाजित हैं खण्ड-4- जैन मुनि के व्रतारोपण की त्रैकालिक उपयोगिता नव्य युग के संदर्भ में। खण्ड-5- जैन मुनि की आचार संहिता का सर्वाङ्गीण अध्ययन। खण्ड-6- जैन मुनि की आहार संहिता का समीक्षात्मक अध्ययन। खण्ड-7- पदारोहण सम्बन्धी विधियों की मौलिकता आधुनिक परिप्रेक्ष्य में। खण्ड - 8 - आगम अध्ययन की मौलिक विधि का शास्त्रीय विश्लेषण । द्वितीय भाग को पाँच खण्डों में प्रस्तुत करते हुए सर्वप्रथम जैन मुनि के व्रतारोपण सम्बन्धी चर्चा की गई है। इसी के साथ मुनि जीवन में प्रवेश पाने हेतु साधक की परीक्षा किस प्रकार की जाती है ? मुनि जीवन में किन नियमों का परिपालन अत्यावश्यक है ? वर्तमान समय में बाल दीक्षा कितनी औचित्यपूर्ण है? आदि कई विषयों का निरूपण किया है, जिससे एक सुदृढ़ नींव का निर्माण हो सके। श्रमणाचार सम्बन्धी द्वितीय खण्ड अर्थात खण्ड-5 में जैन मुनि की आचार संहिता का सर्वाङ्गीण वर्णन किया है । इस चर्चा का लक्ष्य श्रमण जीवन में प्रविष्ट हुए व्यक्ति को तद्जीवन सम्बन्धी आचार व्यवस्था की सूक्ष्मता से परिचित करवाना है। मुनि जीवन में सदाचार, आज्ञा ग्रहण आदि का प्राथमिक मूल्य है। अपनी प्रत्येक आवश्यकता को याचना द्वारा पूर्ण करने से इच्छाओं पर नियंत्रण रहता है। वस्त्र ग्रहण, प्रतिलेखन, शय्यातर, वर्षावास आदि नियमों का परिपालन विवेक को जागृत रखने एवं स्वच्छंद वृत्ति को रोकने के लिए
SR No.006238
Book TitleJain Vidhi Vidhano Ka Tulnatmak evam Samikshatmak Adhyayan Shodh Prabandh Ssar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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