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________________ ४४७ महाकवि ज्ञानसागर की हिन्दी रचनाएं पदार्थ, जीवों के भेद, लब्धि स्वरूप, इन्द्रियों के स्वरूप, प्राणी की विभिन्न प्रवस्थान, शरीरभेद प्रावि का वर्णन है । तीसरे अध्याय में भूमि, नरक, समुद्र, द्वीप, देश, खण्ड, पर्वत, सरोवर, नदियों, १२ प्रकार के कालों, पक्षों, मनुष्य, प्रायं, जीवों की भायु प्रादि का परिचय है । चतुषं प्रध्याय में देवों के प्रकार, स्वर्गी के प्रकार, देवगणों का शासन, देवगरणों का प्राचार-व्यवहार, व्यन्तर एवं उनके प्रकार, स्वर्गी में रहने वाले देवगरणों की श्रायु भादि वरिगत हैं । पाँचवें प्रध्याय में जीव भोर प्रजीव का भेद, द्रव्य के भेद, प्ररणु, स्कन्ध एवं द्रव्य की परिवर्तनशीलता का वर्णन है । छठे अध्याय में योग, उसके भेद, पांच भव्रत एवं कर्मों के आठ प्रकार वर्णित हैं । सप्तम अध्याय में व्रत स्वरूप, पञ्चसमिति, पञ्चमहाव्रत, व्रती पुरुष के भेद, घरगुव्रतों के प्रकार, सल्लेखना, व्रतों से दोषों को दूर करना, सचित और प्रचित्त पदार्थ का श्रन्तर, ११ प्रतिमाएँ, स्यागोन्मुख श्रावक का प्राचार-व्यवहार प्रादि वरिंगत हैं । प्राठवें अध्याय में बन्धेन के कारण एवं उसके भेद बरिंगत हैं । इसी अध्याय में ज्ञानावरण, दर्शनावरण, वेदनीय, मोहनीय, वायु, नाम, गोत्र प्रौर प्रन्तराय - ये प्राठ कर्म घातिया और प्रघातिया - दो भागों में विभक्त होकर प्रात्मा के गुरणों का किस प्रकार हनन करते हैं, बरिंगत है । इसी अध्याय में यह भी स्पष्ट किया गया है कि कर्मों के निष्फल होने की स्थिति को निर्जरा कहते हैं । नवम अध्याय में संवर, गुप्ति, समिति, तप, क्षमा, मार्दव, प्राजंजशौच, सत्य, संयम, त्याग और ब्रह्मचयं धनुप्रेक्षा, २२ प्रकार के परोषहों, विनय, उपाधि, ध्यान एवं उसके भेदों का परिचय कराया है। प्रन्स में दशम अध्याय में का स्वरूप एवं उसकी प्रक्रिया के विषय में विचार किया गया है । सन् १९५३ ई० ( वि० सं २०१०) को पूर्ण होने वाले इस ग्रन्थ में श्री ज्ञानसागर जी ने जैनधर्म एवं दर्शन के मूलभूत सिद्धान्तों से पाठक को परिचित कराने का प्रशंसनीय प्रयास किया है। बीच-बीच में रोचक उद्धरणों से ग्रन्थ की दर्शन अन्य रुक्षता कम की गई है । २ विबेकोदय जैन- दार्शनिक कुन्दकुन्दाचार्य जी की एक प्रति प्रसिद्ध रचना है-समयसार । विवेकोदय' इसो 'समयसार' का हिन्दी पद्यानुवाद है । इसमें १० 'अधिकार' हैं, जिनमें क्रमश: जीब का स्वरूप, जीव के दुःख का कारण, अपने को कर्ता समझने का मिथ्याभिमान, शुभ-कर्म, प्रशुभ-कर्म, राग इत्यादि का बन्धन, सम्यग्ज्ञान, कर्मों को नष्ट करना, बन्धन का कारण, मोक्ष का स्वरूप एवं स्यादवाद सिद्धान्त का वर्णन है । इस ग्रन्थ में प्रयुक्त पद्यों की संख्या २२६ है, ये सभी पद्य प्रत्यन्त सरल भाषा में रचे गये हैं । पद्यों के प्रतिरिक्त इस कृति में जन-धर्म के १. श्रीतत्त्वार्थसूत्र महाशास्त्र को टीका, पृ० सं० १८१ २. यह ग्रन्थ दिगम्बर जैन समाज, हिसार से सन् १०५८ ई० में प्रकाशित हुमा है ।
SR No.006237
Book TitleGyansgar Mahakavi Ke Kavya Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Tondon
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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