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महाकवि भानसागर की हिम्बी रचनाएँ
। ४३ व्यतिरेक', विरोध, परिसंस्था' और अपह्नुति अलङ्कारों का सुन्दर प्रयोग दृष्टिगोचर होता है।
काव्य की भाषा सरल, सुबोष मोर खड़ी बोली है। भाषा अनावश्यक मलङ्कारों के बोझ से दबी हुई नहीं है। इस कान्य में कवि ने सुकुमार शैली का प्रयोग किया है।
__इस काव्य में कवि का प्रतिवर्णन एवं वस्तु-वर्णन भी उल्लेखनीय है। उदाहरण के रूप में विवया पर्वत,५ उमिमालिनी नदी, मलकापुरी, पुण्डरीकिणी, सुसीमा एवं प्रयोध्या' के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।
कवि ने काव्य के माध्यम से जन-पर्म एवं दर्शन के सिद्धान्तों को पाठक तक पहुँचाने का अद्भुत प्रयास किया है, जिनमें प्रोषषोपवास,' ध्यान-भेद, २ दैगम्बरीदीक्षा'3, पञ्चसमिति", एकादशवत'५ मुनिस्वरूप एवं न्यस्वरूप'" उल्लेखनीय हैं । यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि कर्मकाण्ड का कवि ने विरोध किया है।
क्योंकि इस काम्य में प्राचार्य-सम्मत महाकाव्य के अधिकांश लक्षण ष्टिगोचर हो जाते हैं, अतः हमें इस काम्य को महाकाव्य की संज्ञा देने में सङ्कोच नहीं करना चाहिये ।। १. वही, २०५३ २. वही, ॥३८, ६४४ ३. वही, ६२७-३० ४. ऋषभावतार, १०३८-२६
वही, ११६
वही, १०५ ७. वही, ११६
वही, २२ ६. वही, ६१ १०. वही, ६१-७ १.१. वही, १७ १२. वही, १०८, ३९, ४२, २०१६, १६, १३३३८, १६१६ १३. वही, ११५५, २०४८ १४. वही, ३१ १५. बही, १२ १६. पही, ६।१४.२३ १७. वही, १७२-७ १८. वही, ४१२१ १९. यह अन्य भी दिगम्बर जैन समाव, मदनगंब से सन् १९५७ ई. में प्रकाशित
हमा है।