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________________ ४३४ महाकवि ज्ञानसागर के काव्य-एक अध्ययन को समझाना भारवि के प्रथंगौरव को झांकी प्रस्तुत करता है। पर्वत-वर्णन, वनबिहार-वर्णन, सन्ध्या-वर्णन और प्रभातवर्णन इसे माघ के 'शिशुपालवष' की तुलना में ले जाते हुए लगते हैं। किन्तु एक बात यह द्रष्टव्य है कि उक्त सनातनधर्मावलम्बी कवियों ने अपने काग्यों के माध्यम से धर्म-दर्शन एवं मुनियों को जीवन-चर्चा उस प्रकार से नहीं की है, जिस प्रकार से प्रस्मदालोच्य महाकवि श्री ज्ञानसागर ने की है। कालिदास काव्यों में हमें वन्य-जोवन एवं मुनियों के माचार-व्यवहार की झांकी यत्र-तत्र मिल जाती है, किन्तु उसका प्रस्तुतीकरण श्रीज्ञानसागर के काव्यों में वरिणत मुनियों के प्राचार-व्यवहार के समान नहीं है। जयोदय के जयकुमार को गृहस्थाश्रम के सम्बन्ध में उपदेश देने वाले मुनि एवं मोक्ष मार्ग में दीक्षित करने वाले तीर्थङ्कर भगवान् ऋषभदेव के वर्णन कालिदास के काव्यों में वरिणत गुरु वसिष्ठ और महर्षि कण्व के वर्णन से कम महत्त्वपूर्ण नहीं हैं। बल्कि कहीं-कहीं तो इन जैन मुनियों ने अपने प्राचार-व्यवहार के कारण वसिष्ठ और कण्व से भी ऊंचा स्थान प्राप्त कर लिया है। साहित्य के माध्यम से दर्शन को प्रस्तुत करने को कला का अंशमात्र भी हमें सनातनधर्मावलम्बी कवियों में देखने को नहीं मिलता जबकि श्रीज्ञानसागर इस कला में सिद्धहस्त हैं । 'जयोक्य' में उद्देश्य है-अपरिग्रह व्रत की शिक्षा देना। पाठक को रुक्षता का अनुभव न हो, इसलिए कवि ने जयकुमार एवं सुलोचना के कथानक के माध्यम से अपना उद्देश्य पूरा कर लिया है। कहना न होगा कि जयोदय काव्यशास्त्रीय, सामाजिक, राजनैतिक, धार्मिक पौर दार्शनिक दृष्टियों से कालिदासोत्तर काव्यों के मध्य में रखने के पूर्णतः योग्य है। भले ही सुकुमारता को दृष्टि से यह काध्य कालिदास के काव्यों को बराबरी न कर पाए, पर समालोचक यदि निष्पक्ष होकर इसकी समीक्षा करेंगे तो इसको भारवि, माघ पौर श्रीहर्ष के काग्यों के समाम तो अवश्य पाएंगे, ऐसा मेरा विश्वास है। (ख) वीरोदय यह भगवान महावीर के त्याग एवं तपस्यापूर्ण जीवन पर आधारित २२ सों का महाकाव्य है । इस काम्बवारा कवि ने ब्रह्मचर्य एवं चारित्रिक दृढ़ता की शिक्षा दी है । इसके परिशीलन से ज्ञात हुआ है कि यह काव्य एक मोर तो शैली की ष्टि से कालिदास के काव्यों की श्रेणी में प्रा जाता है; और दूसरी पोर दर्शनपरक होने के कारण बौद्ध-बार्शनिक महाकवि अश्वघोष के काव्यों के समकक्ष मा जाता है। जब हम इस काव्य को काव्यशास्त्रीय दृष्टि से देखते हैं तो यह उत्कृष्ट कोटि के महाकाव्य की श्रेणी में भा जाता है। जब इसकी घटनामों को देखते हैं तो यह
SR No.006237
Book TitleGyansgar Mahakavi Ke Kavya Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Tondon
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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